घबराइये मत
कीजिये कुछ, थामकर सिर बैठिये मत।
आज गलियों की हवा कुछ गर्म सी है,
भूलकर भी खिड़कियों को खोलिये मत।
अब हमारे शहर का दस्तूर है यह,
हादसों के बीच रहिये भागिये मत।
मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।
रौशनी तो झर रही है तारकों से,
अब अंधेरी रात को तो कोसिये मत।