सावन शेष रहे ।
सूरज अवसादित हो बैठा
ऋतुओं में अनबन,
नदिया पर्वत सागर रूठे
पवनों में जकड़न,
जो हो, बस आशा.ऊर्जा का
दामन शेष रहे ।
मौन हुए सब पंख पखेरू
झरनों का कलकल,
नीरवता को भंग कर रहा
कोई कोलाहल,
जो हो, संवादी सुर में अब
गायन शेष रहे ।
-महेन्द्र वर्मा