भारत के महान संत कवियों के परिचय की श्रृंखला के अंतर्गत मैंने ब्रह्मवादी संतों को प्राथमिकता दी है। मैं मानता हूं कि ब्रह्मवादी विचारधारा सत्य के अधिक निकट है। यह केवल श्रद्धा पर आधारित नहीं है बल्कि तर्क की कसौटी पर अधिक खरी उतरती है।
ऐसे ही एक ब्रह्मवादी संत सिंगा जी का परिचय प्रस्तुत है-
संत सिंगा जी का जन्म वैशाख शुक्ल 11 संवत 1576 को मध्यप्रदेश के खुजरी ग्राम में हुआ था। इनकी माता का नाम गौरबाई तथा पिता का नाम भीमाजी था। बचपन में बालक सिंगा को माता-पिता के द्वारा दिव्य संस्कार प्राप्त हुए। 5 वर्ष बाद इनका परिवार हरसूद में जाकर बस गया। युवा होने पर सिंगाजी का विवाह हो गया किंतु ये गृहस्थ जीवन के प्रति विरागी थे।
एक दिन सिंगाजी के कानों ने संत मनरंगीर जी का मधुर गायन सुना। इस भजन को सुनकर सिंगाजी का हृदय वैराग्य से आपूरित हो गया। उन्होंने संत मनरंगीर जी का शिष्यत्व ग्रहण किया और जंगलों में साधना करने लगे। अपने 3 वर्षों के साधना काल में सिंगाजी ने आठ सौ पदों की रचना की। उनकी रचनाओं में प्रमुख हैं- 1. सिंगाजी की बाणावली, 2. आत्म ध्यान, 3. सिंगाजी का दृढ़ उपदेश, 4.आठ वार सिंगाजी का, 5. पंद्रह दिन, 6. सिंगा जी की नराज।
संवत 1616 में श्रावण शुक्ल 9 को सिंगाजी ने हरसूद में स्वेच्छा से समाधि ली।
प्रस्तुत है उनका एक पद-
निर्गुण ब्रह्म है न्यारा, कोइ समझो समझणहारा।
खोजत ब्रह्मा जनम सिराना, मुनिजन पार न पाया।
खोजा खोजत शिव जी थाके, ऐसा अपरंपारा।।
सेस सहस मुख रटे निरंतर, रैन दिवस एकसारा।
ऋषि मुनि और सिद्ध चाौरासी, तैंतिस कोटि पचहारा।।
त्रिकुटी महल में अनहद बाजे, होत सबद झनकारा।
सुकमणि सेज सुन्न में झूले, वो है गुरू हमारा।।
वेद कहे अरु कह निरवाणी, श्रोता कहो विचारा।
काम क्रोध मद मत्सर त्यागों, झूठा सकल पसारा।।
एक बूंद की रचना सारी, जाका सकल पसारा।
सिंगाजी भर नजरा देखा, वो ही गुरू हमारा।।
ऐसे ही एक ब्रह्मवादी संत सिंगा जी का परिचय प्रस्तुत है-
संत सिंगा जी का जन्म वैशाख शुक्ल 11 संवत 1576 को मध्यप्रदेश के खुजरी ग्राम में हुआ था। इनकी माता का नाम गौरबाई तथा पिता का नाम भीमाजी था। बचपन में बालक सिंगा को माता-पिता के द्वारा दिव्य संस्कार प्राप्त हुए। 5 वर्ष बाद इनका परिवार हरसूद में जाकर बस गया। युवा होने पर सिंगाजी का विवाह हो गया किंतु ये गृहस्थ जीवन के प्रति विरागी थे।
एक दिन सिंगाजी के कानों ने संत मनरंगीर जी का मधुर गायन सुना। इस भजन को सुनकर सिंगाजी का हृदय वैराग्य से आपूरित हो गया। उन्होंने संत मनरंगीर जी का शिष्यत्व ग्रहण किया और जंगलों में साधना करने लगे। अपने 3 वर्षों के साधना काल में सिंगाजी ने आठ सौ पदों की रचना की। उनकी रचनाओं में प्रमुख हैं- 1. सिंगाजी की बाणावली, 2. आत्म ध्यान, 3. सिंगाजी का दृढ़ उपदेश, 4.आठ वार सिंगाजी का, 5. पंद्रह दिन, 6. सिंगा जी की नराज।
संवत 1616 में श्रावण शुक्ल 9 को सिंगाजी ने हरसूद में स्वेच्छा से समाधि ली।
प्रस्तुत है उनका एक पद-
निर्गुण ब्रह्म है न्यारा, कोइ समझो समझणहारा।
खोजत ब्रह्मा जनम सिराना, मुनिजन पार न पाया।
खोजा खोजत शिव जी थाके, ऐसा अपरंपारा।।
सेस सहस मुख रटे निरंतर, रैन दिवस एकसारा।
ऋषि मुनि और सिद्ध चाौरासी, तैंतिस कोटि पचहारा।।
त्रिकुटी महल में अनहद बाजे, होत सबद झनकारा।
सुकमणि सेज सुन्न में झूले, वो है गुरू हमारा।।
वेद कहे अरु कह निरवाणी, श्रोता कहो विचारा।
काम क्रोध मद मत्सर त्यागों, झूठा सकल पसारा।।
एक बूंद की रचना सारी, जाका सकल पसारा।
सिंगाजी भर नजरा देखा, वो ही गुरू हमारा।।