शिक्षा, धार्मिकता और मानव-विकास

 

 


मनुष्य ने पिछली कुछ सदियों में ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व विस्तार किया है । ज्ञान के इस विस्तार ने बहुत सी पारंपरिक मान्यताओं को बदला है जिन्हें मनुष्य हजारों वर्षों तक ज्ञान समझता रहा । गैलीलियो से लेकर स्टीफन हॉकिंग्स तक और कणाद से लेकर आर्यभट्ट तक अनेक ज्ञानऋषियों ने अपनी बौद्धिक क्षमता से दुनिया को अनेक भ्रमात्मक ज्ञान से मुक्त किया है। दो हजार साल पहले तक ज्ञान के मूलतः दो ही क्षेत्र थे- धर्म और दर्शन  । लेकिन दर्शन  पर धर्म हावी था । एक धार्मिक नेता जो कुछ कह देता था वही ज्ञान माना जाता था । ज्ञान का विकास एक गतिशील प्रक्रिया है किंतु धार्मिक ज्ञान अपरिवर्तित रहता है । हजारों साल पहले जो धार्मिक ज्ञान बताया गया या लिखा गया वह आज भी उसी रूप में, बल्कि कई संदर्भों में विकृत रूप में, प्रचलित है और उन समूहों द्वारा स्वीकारा जाता है जो धार्मिक हैं । किंतु ज्ञान के उपासकों ने पाया कि धर्म के अतिरिक्त संसार में जानने के लिए और भी बहुत कुछ है बल्कि ज्ञान का क्षेत्र असीम है । उन्होंने ज्ञान के जो सैकड़ों नए सूरज उगाए उन के तीव्र प्रकाश  से धार्मिक ज्ञान की चमक किंचित धुँधली हुई । प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विश्ववविद्यालयों तक ज्ञान के इन नए पूजाघरों में विभिन्न विषयों के बारे में दुनिया भर के लोग सीख रहे हैं । इसी संदर्भ में शोधकर्ताओं ने कुछ शोध किए हैं । इन शोधकर्ताओं ने पाया कि दुनिया के जिन क्षेत्रों में धार्मिकता अधिक है वहां नए ज्ञान को भलीभांति सीखने के प्रति रुचि कम होती है । इस लेख में धार्मिकता और आधुनिक शिक्षा के परस्पर प्रभावगत संबंधों की विवेचना की गई है ।

 

यूनेस्को सहित बहुत सी संस्थाएँ मानव विकास से संबंधित विभिन्न घटकों का वैश्विक  सर्वेक्षण करती रहती हैं । यूनेस्को द्वारा जारी किए गए मानव विकास प्रतिवेदन में 188 देशों के शैक्षिक सूचकांकों की सूची दी गई है । इस सूची के अवलोकन से यह निष्कर्ष निकलता है कि दुनिया के जिन देशों  में धार्मिकता अधिक है वहाँ की साक्षरता का दर भी कम है और जिन देशों में धार्मिकता कम है वहाँ की साक्षरता अधिक है । उदाहरण के लिए अधिक धार्मिकता वाले देश , जैसे- ईथियोपिया, नाइजर, यमन, अफगानिस्तान, सोमालिया आदि में 95 प्रतिशत से अधिक लोग धार्मिक हैं और इन्हीं देशों  में साक्षरता का दर 21 से 35 प्रतिशत के बीच है जो विश्व  में सबसे कम है । कम धार्मिकता वाले देशों की सूची में  जापान, स्वीडन, इज़राइल, ग्रेट ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, जर्मनी आदि  शामिल हैं जहां धार्मिक लोगों की संख्या 13 से 35 प्रतिशत के बीच है । इन देशों  की साक्षरता का दर 98 प्रतिशत से अधिक है ।

 

हमारा देश  धार्मिक मान्यताओं वाला देश  है । यहाँ स्वयं को अधार्मिक कहने वालों की संख्या केवल 30 लाख है जो कुल जनसंख्या के 1 प्रतिशत से भी कम है । यहाँ की साक्षरता का दर 75 प्रतिशत है जो विकसित देशों  की तुलना में बहुत कम है । आश्चर्य  की बात तो यह है कि विश्व  शैक्षिक सूचकांक में भारत 112 वें क्रमांक में है जो थाइलैंड, मलेशिया, तुर्की, और ईरान जैसे देशों से भी नीचे है । उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या भी कम धार्मिकता वाले देशों में अधिक है जबकि अधिक धार्मिकता वाले देशों  में बहुत कम है । कनाडा, जापान, आस्ट्रेलिया, कोरिया,  ब्रिटेन, इज़राइल आदि देशों  में स्नातक या उससे उपर तक शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या 46 से 56 प्रतिशत है जबकि भारत में केवल 9 प्रतिशत है ।

 

वाशिंगटन स्थित प्यू रिसर्च सेंटर ने दुनिया के विभिन्न धर्मों के मानने वाले और उनके शैक्षिक स्तर में संबंध का अध्ययन किया है । इस अध्ययन के अनुसार यहूदी लोग अन्य की तुलना में सबसे अधिक शिक्षित हैं । दूसरे स्थान पर ईसाई समुदाय है जबकि हिन्दू और मुस्लिम समुदाय की शैक्षिक स्थिति सबसे कमजोर  है । आँकड़ों के अनुसार यहूदी समुदाय शिक्षालयों में औसत रूप से 13.4 वर्ष रह कर शिक्षा प्राप्त  करता है जबकि हिंदू औसतन केवल 7.1 वर्ष और मुस्लिम समुदाय 6.7 वर्ष ही व्यतीत करता है । ध्यान रहे कि ये वैश्विक आँकड़े हैं, किसी एक देश  के नहीं । यही आँकड़ा विश्व  भर की जनसंख्या के लिए 7.7 वर्ष है । दुनिया भर के विभिन्न धार्मिक समुदायों के उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों का प्रतिशत इस प्रकार है- यहूदी 61 प्रतिशत, ईसाई 20 प्रतिशत, हिंदू 10 प्रतिशत और मुस्लिम 8 प्रतिशत । धार्मिकता और शिक्षा के संबंध को ये आँकड़े बेहतर रूप से प्रदर्शित  करते हैं । अमेरिका के लीड्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 82 देशों  में आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों में गणित और विज्ञान में उपलब्धि को जानने के लिए एक अध्ययन किया । इस अध्ययन में भी यही निष्कर्ष निकला कि उच्च धार्मिकता वाले देशों के छात्रों का गणित और विज्ञान में प्रदर्शन  कमजोर है । इसके विपरीत कम धार्मिकता वाले देशों  के छात्रों ने इन विषयों में अच्छे अंक अर्जित किए ।

 

उपरोक्त आँकड़े स्पष्ट रूप से यह दर्शाते हैं कि धार्मिकता शैक्षिक उपलब्धि को नकारात्मक ढंग से प्रभावित करती है । यूनेस्को द्वारा जारी शैक्षिक सूचकांक की सूची को देखें तो यह ज्ञात होता है कि कम शैक्षिक उपलब्धि वाले देश  मुख्यतः अफ्रीका, दक्षिण एशिया और खाड़ी में स्थित हैं । यही वे देश  हैं जहां धार्मिकता अधिक है । एक बात और ध्यान देने योग्य है, अधिक धार्मिकता वाले देशों  की आर्थिक दशा  भी कमजोर है। गरीब, अविकसित और विकासशील देश  भी वही देश  हैं जहाँ के लोग आधुनिक ज्ञान के बजाय धार्मिक परंपराओं में ज्यादा रुचि लेते है । खाड़ी के कुछ देश  तेल के भंडार के कारण अमीर हैं न कि अपनी ज्ञानात्मक क्षमता के कारण ।

 

किसी देश की शैक्षिक, बौद्धिक और  आर्थिक  स्थिति उस देश के मानव-विकास के प्रतिबिम्बक होते हैं l ज्ञान के इतिहास पर गौर करें तो हम पाते हैं कि जिन देशों  में वैज्ञानिक, गणितीय और दार्शनिक  ज्ञान की परंपरा की शुरूआत हुई उनमें भारत और अरब देशों  के  नाम भी शामिल है लेकिन  विडंबना ही है कि आज यही देश  वास्तविक ज्ञान की खोज के संदर्भ में हाशिए पर चले गए हैं । पिछले दो हजार साल के धार्मिक हलचलों ने इन देशों को प्राकृतिक और वास्तविक ज्ञान से विमुख कर दिया है । यद्यपि अफ्रीका, मध्यपूर्व और दक्षिण एशिया के देशों  की शैक्षिक उपलब्धि में  सुधार हो रहा है किंतु यह शेष विश्व  की शैक्षिक उपलब्धि की तुलना में बहुत ही कम है । इनकी वर्त्तमान स्थिति के आधार पर कहा जा सकता है कि ये देश समृद्ध और विकसित देशों से एक सदी पीछे हैं l इन देशों और इनमें रहने वाले समुदायों को अपने पिछड़ेपन के कारणों पर  गंभीरता  से विचार  करने की आवश्यकता है ।

- महेन्द्र वर्मा


सच के झरोखे से - विमोचन

 



मेरी दूसरी पुस्तक ‘सच के झरोखे से ’ का विमोचन

कोई भी कृतिकार अमर नहीं होता किन्तु उसकी कोई अमर हो जाती है। यह विचार व्यक्त किया विद्वान भाषाविद डॉ. चित्तरंजन कर ने। वे महेन्द्र वर्मा की नई पुस्तक सच के झरोखे से के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सत्य तो निरपेक्ष होता है लेकिन सच लौकिक दृष्टिकोण को व्यक्त करता है। इस पुस्तक का शीर्षक और इसकी विषय वस्तु उसी  लौकिक सच को विभिन्न संदर्भों में उद्घाटित करता है। डॉ. कर ने पुस्तक के इस अंश का विशेष उल्लेख किया– ‘ऋग्वैदिककालीन देवताओंद्यु, आपः, मरुत, इंद्रा, अग्नि, पर्जन्य, ऊषा, सोम, सविता, पृथ्वी आदि की विशेषताओं को उन लोगों ने जाना जिन्हें आज हम वैज्ञानिक कहते हैं। यदि ईश्वर की लीला का चिंतन-मनन करने वालों को धार्मिक और आस्तिक कहा जाता है तो ऐसे महान वैज्ञानिक ही सच्चे अर्थों में धार्मिक और आस्तिक हैं क्योंकि वे सृष्टि की सर्वोच्च सत्ता ऊर्जा और उससे निर्मित पदार्थों की निरंतर ‘उपासना’ करते हैं।

 

 

विमोचन समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध छंदकार श्री अरुण निगम ने कहा- ‘इस पुस्तक के सभी आलेख शोध-आलेख हैं लेखक ने परिश्रमपूर्वक विभिन्न आलेखों में संबंधित तथ्यों के मूल कारणों तक पहुंचने का प्रयास किया है छत्तीसगढ़ में गद्य लेखन में यह पुस्तक मील का पत्थर सिद्ध होगी स्वामी स्वरूपनन्द महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला कार्यक्रम की प्रमुख वक्ता थीं उन्होंने पुस्तक के एक आलेख ‘सच क्या है’ का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि यह आलेख सम्पूर्ण पुस्तक का प्रतिनिधित्व करता है। किसी घटना के कारणों को हम बिना तर्क किए मांलेते है तो यह एक अलग तरह का विश्वास है और यदि तर्कों के द्वारा कारणों को पहचानते है तो यह अलग तरह का विश्वास होता है। साहित्यकार जगदीश देशमुख ने अपने उद्बोधन में पुस्तक के महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया

हिन्दी साहित्य भारती के प्रदेशाध्यक्ष श्री बलदाऊ राम साहू के अयोजकत्व में सम्पन्न इस कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों के द्वारा माँ सरस्वती के पूजन-अर्चन से हुआ। बलदाउ राम साहू ने  स्वागत उद्बोधन उद्बोधन में कहा कि पुस्तक में कुल 32 आलेख हैं जो साहित्य, कला, विज्ञानं, धर्म, दर्शन, संगीत, लोक परंपरा आदि विविध विषयों पर लिखे गए हैं I इस के पश्चात अतिथियों का पुष्पहार से स्वागत किया गया। लेखकीय वक्तव्य में महेन्द्र वर्मा ने कहा कि अध्ययनशीलता सच और भ्रम को अलगअलग चिह्नित कर देती है। सामान्यजन-मानस में व्याप्त भ्रम ने इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा दी।

कार्यक्रम के अंत में अतिथियों को स्मृतिचिह्न भेंट किया गया ।लोक- गायक और गीतकार श्री सीताराम साहू ‘श्याम’ ने कार्यक्रम का संचालन किया। उन्होंने विमोचित पुस्तक के शीर्षकों को लेकर लिखी गई स्वरचित कविता भी प्रस्तुत की। विशेष रूप से पधारे श्री मोतीलाल साहू ने बांसुरी वादन प्रस्तुत किया। आभार प्रदर्शन डॉ. बी. रघु ने किया। कार्यक्रम में श्रीमती माधुरी कर, श्री पूनारामसाहू, कु. सुजात, डॉ. आशीष साहू , श्री बागची  आदि उपस्थित थे।

- 'छत्तीसगढ़ आसपास' में प्रकाशित रिपोर्ट