नाकामी को ढंकते क्यूं हो,
नए बहाने गढ़ते क्यूं हो ?
रस्ते तो बिल्कुल सीधे हैं,
टेढ़े-मेढ़े चलते क्यूं हो ?
तुमने तो कुछ किया भी नहीं,
थके-थके से लगते क्यूं हो ?
भीतर कालिख भरी हुई है,
बाहर उजले दिखते क्यूं हो ?
पैर तुम्हारे मुड़ सकते हैं,
चादर छोटी कहते क्यूं हो ?
कद्र वक़्त की करना सीखो,
छत की कड़ियां गिनते क्यूं हो ?
नया ज़माना पूछ रहा है,
मुझ पर इतना हंसते क्यूं हो ?
-महेन्द्र वर्मा
लम्हा एक पुराना ढूंढ,
फिर खोया अफ़साना ढूंढ।
वे गलियां वे घर वे लोग,
गुज़रा हुआ ज़माना ढूंढ।
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
लोग बदल से गए यहां के,
कोई और ठिकाना ढूंढ।
कुदरत में है तरह तरह के,
सुंदर एक तराना ढूंढ।
दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा इक पैमाना ढूंढ।
प्रेम वहीं कोने पर बैठा,
दिल को ज़रा दुबारा ढूंढ।
जिस पर तेरा नाम लिखा हो,
ऐसा कोई दाना ढूंढ।
- महेन्द्र वर्मा
तेरा मुझसे क्या नाता है, पूछ रही है सारी दुनिया,
अपनी मर्जी का मालिक बन, अड़ी खड़ी है सारी दुनिया।
बारूदी पंखुड़ी लगा कर, काल उड़ रहा आसमान में,
नागासाकी न हो जाए, डरी डरी है सारी दुनिया।
जाने कितने पिण्ड सृष्टि के, ब्लैक होल में बदल गए,
धरती उसमें समा न जाए, सहम गयी है सारी दुनिया।
अनगिन लोग हैं जिनके सर पर, छत की छांव नहीं लेकिन,
मंगल ग्रह पर महल बनाने, मचल उठी है सारी दुनिया।
ढूंढ रहा था मैं दुनिया को, देखा जब तो सिहर गया,
लाशों के मलबे के नीचे, दबी पड़ी है सारी दुनिया।
संबंधों के फूल महकते, थे जो सारे सूख गए हैं,
ढाई आखर के मतलब को भूल चुकी है सारी दुनिया।
आंधी तूफां तो जीवन में, आते जाते ही रहते हैं,
नई नई उम्मीदों से भी, भरी भरी है सारी दुनिया।
मां की ममता के आंगन में, थिरक रहा है बचपन सारा,
उसके आंचल के कोने से, नहीं बड़ी है सारी दुनिया।
- महेन्द्र वर्मा