फागुनी दोहे



देहरी पर आहट हुई, फागुन पूछे कौन।
मैं बसंत तेरा सखा, तू क्यों अब तक मौन।।


निरखत बासंती छटा, फागुन हुआ निहाल।
इतराता सा वह चला, लेकर रंग गुलाल।।


कलियों के संकोच से, फागुन हुआ अधीर।
वन-उपवन के भाल पर, मलता गया अबीर।।


टेसू पर उसने किया, बंकिम दृष्टि निपात।
लाल लाज से हो गया, वसन हीन था गात।।


अमराई की छांव में, फागुन छेड़े गीत।
बेचारे बौरा गए, गात हो गए पीत।।


फागुन और बसंत मिल, करे हास-परिहास।
उनको हंसता देखकर, पतझर हुआ उदास।।


पूनम फागुन से मिली, बोली नेह लुटाय।
और माह फीके लगे, तेरा रंग सुहाय।।


आतंकी फागुन हुआ, मौसम था मुस्तैद।
आनन-फानन दे दिया, एक वर्ष की क़ैद।।

आप सब को होली की शुभकामनाएं

                                                                              -महेन्द्र वर्मा