रंगमंच


हित रक्षक भक्षक बन जाए क्या कर लोगे,
सुख ही दुखदायक बन जाए क्या कर लोगे।


बहिरंतर में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व सजाए
मित्र कभी निंदक बन जाए क्या कर लोगे।


पल पल दृश्य हुए परिवर्तित धरे मुखौटे,
जीवन यदि नाटक बन जाए क्या कर लोगे।


विश्वासों के धवल वसन में छिद्र हैं इतने,
सूत्र सूत्र जालक बन जाए क्या कर लोगे।


शुभ्र विवेकवान हंसों के मध्य दंभवश ,
कागा उपदेशक बन जाए क्या कर लोगे।


शूल चुभोया अपनों ने जो कभी हृदय में
घाव वही घातक बन जाए क्या कर लोगे।

                                                                 -महेन्द्र वर्मा