दोहे


सगे पराये बन गये, दुर्दिन की है मार,
छाया भी संग छोड़ दे, जब आए अंधियार।


कान आंख दो दो मिले, जिह्वा केवल एक,
अधिक सुनें देखें मगर, बोलें मित अरु नेक।


दुनिया में दो ताकतें, कलम और तलवार,
किंतु कलम तलवार से, कभी न खाये हार।


मन को वश में कीजिए, मन से बारम्बार,
जैसे लोहा काटता, लोहे का औजार।


गुनियों ने बतला दिया, जीवन का यह मर्म,
गिरता-पड़ता भाग है, चलता रहता कर्म।


जग में जितने धर्म हैं, सब की अपनी रीत,
धरती कितनी नेक है, करती सबसे प्रीत।


सभी प्राणियों के लिए, अमृत आशावाद,
जैसे सूरज वृक्ष को, देता पोषण खाद।

                                                          -महेन्द्र वर्मा