सगे पराये बन गये, दुर्दिन की है मार,
छाया भी संग छोड़ दे, जब आए अंधियार।
कान आंख दो दो मिले, जिह्वा केवल एक,
अधिक सुनें देखें मगर, बोलें मित अरु नेक।
दुनिया में दो ताकतें, कलम और तलवार,
किंतु कलम तलवार से, कभी न खाये हार।
मन को वश में कीजिए, मन से बारम्बार,
जैसे लोहा काटता, लोहे का औजार।
गुनियों ने बतला दिया, जीवन का यह मर्म,
गिरता-पड़ता भाग है, चलता रहता कर्म।
जग में जितने धर्म हैं, सब की अपनी रीत,
धरती कितनी नेक है, करती सबसे प्रीत।
सभी प्राणियों के लिए, अमृत आशावाद,
जैसे सूरज वृक्ष को, देता पोषण खाद।
-महेन्द्र वर्मा
हित रक्षक भक्षक बन जाए क्या कर लोगे,
सुख ही दुखदायक बन जाए क्या कर लोगे।
बहिरंतर में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व सजाए
मित्र कभी निंदक बन जाए क्या कर लोगे।
पल पल दृश्य हुए परिवर्तित धरे मुखौटे,
जीवन यदि नाटक बन जाए क्या कर लोगे।
विश्वासों के धवल वसन में छिद्र हैं इतने,
सूत्र सूत्र जालक बन जाए क्या कर लोगे।
शुभ्र विवेकवान हंसों के मध्य दंभवश ,
कागा उपदेशक बन जाए क्या कर लोगे।
शूल चुभोया अपनों ने जो कभी हृदय में
घाव वही घातक बन जाए क्या कर लोगे।
-महेन्द्र वर्मा
घबराइये मत
इस ज़माने की चलन से चौंकिये मत,
कीजिये कुछ, थामकर सिर बैठिये मत।
आज गलियों की हवा कुछ गर्म सी है,
भूलकर भी खिड़कियों को खोलिये मत।
अब हमारे शहर का दस्तूर है यह,
हादसों के बीच रहिये भागिये मत।
मोम के घर में छिपे बैठे हुए जो,
आंच की उम्मीद उनसे कीजिये मत।
रौशनी तो झर रही है तारकों से,
अब अंधेरी रात को तो कोसिये मत।
-महेन्द्र वर्मा