सरे बज़्म जी भर सताया किसी ने,
मेरा कर्ज सारा चुकाया किसी ने।
थकी ज़िंदगी थी सतह झील की सी,
तभी एक पत्थर गिराया किसी ने।
सुकूने-जिगर यक-ब-यक खो गया है,
या वक़्ते- फ़रागत चुराया किसी ने।
मिले नामवर हमनफ़स ज़िंदगी में,
किसी ने हंसाया रुलाया किसी ने।
वो मासूम सा ग़मज़दा लग रहा था,
कि जैसे उसे आजमाया किसी ने।
कोई कह रहा था कि इंसानियत हूं,
मगर नाम उसका मिटाया किसी ने।
दीवानगी बेतरह बढ़ चली जब,
मेरा हाल मुझको सुनाया किसी ने।
बज़्म- महफिल
वक़्ते फ़रागत- आराम का समय
नामवर- प्रसिद्ध
हमनफ़स- साथी
-महेन्द्र वर्मा