एक
उस दिन
आईने में मेरा प्रतिबिंब
कुछ ज्यादा ही अपना-सा लगा
मैंने उससे कहा-
तुम ही हो
मेरे सुख-दुख के साथी
मेरे अंतरंग मित्र !
प्रतिबिंब के उत्तर ने
मुझे अवाक् कर दिया
उसने कहा-
तुम भ्रम में हो
मैं ही तो हूँ
तुम्हारा
सबसे बड़ा शत्रु भी !
दो
इंसान को
इंसान ही रहने दो न
क्यूँ उकसाते हो उसे
बनने के लिए
भगवान या शैतान
अरे, धर्म !
अरी, राजनीति !
-महेन्द्र वर्मा