शाश्वत शिल्प
विज्ञान-कला-साहित्य-संस्कृति
क्षणिकाएँ
1.
हम तो
अक्षर हैं
निर्गुण-निरर्थक
तुम्हारी जिह्वा के खिलौने
अब
यह तुम पर है कि
तुम हमसे
गालियाँ बनाओ
या
गीत
2.
मैंने तो
सबको दिया
वही धरा
वही गगन
वही जल-अगन-पवन
अब तुम
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह
-महेन्द्र वर्मा
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