नैतिकता कुंद हुई
न्याय हुए भोथरे,
घूम रहे जीवन के
पहिए रामासरे।
भ्रष्टों के हाथों में
राजयोग की लकीर,
बुद्धि भीख माँग रही
ज्ञान हो गया फकीर।
घूम रहे बंदर हैं
हाथ लिए उस्तरे।
धुँधला-सा दिखता है
आशा का नव विहान,
क्षितिज पार तकते हैं
पथराए-से किसान।
सोना उपजाते हैं
लूट रहे दूसरे। -महेन्द्र वर्मा
न्याय हुए भोथरे,
घूम रहे जीवन के
पहिए रामासरे।
भ्रष्टों के हाथों में
राजयोग की लकीर,
बुद्धि भीख माँग रही
ज्ञान हो गया फकीर।
घूम रहे बंदर हैं
हाथ लिए उस्तरे।
धुँधला-सा दिखता है
आशा का नव विहान,
क्षितिज पार तकते हैं
पथराए-से किसान।
सोना उपजाते हैं
लूट रहे दूसरे। -महेन्द्र वर्मा