सुख-दुख से परे

एकमात्र सत्य हो
तुम ही

तुम्हारे अतिरिक्त
नहीं है अस्तित्व
किसी और का

सृजन और संहार
तुम्ही से है
फिर भी
कोई जानना नहीं चाहता
तुम्हारे बारे में !

कोई तुम्हें
याद नहीं करता    
आराधना नहीं करता
कोई भी तुम्हारी

कितने उपेक्षित-से
हो गए हो तुम
पहले तो
ऐसा नहीं था !!

भले ही तुम
सुख-दुख से परे हो
किंतु,
मैं तुम्हारा दुख
समझ सकता हूं
ऐ ब्रह्म !!!

 

                                                   -महेन्द्र वर्मा