नज़ीर अकबराबादी


 जब आशिक मस्त फकीर हुए

सूफीमत के शायरों में नज़ीर अकबराबादी का नाम प्रसिद्ध है। ये ग़ालिब और मीर के समकालीन थे। इनका जन्म सन् 1735 में दिल्ली में हुआ था। बाद में ये आगरे में बस गए थे। नवाब वाजिद अली शाह इन्हें दरबारी कवि बनाना चाहते थे लेकिन नज़ीर ने इंकार कर दिया। इन्हें अवधी, ब्रज, मारवाड़ी, पंजाबी और संस्कृत भाषाओं का ज्ञान था। कृष्ण की लीलाओं पर आधारित इनकी रचनाएं बहुत प्रसिद्ध हैं। इनका देहावसान सन् 1830 में हुआ।
मानवता को एकमात्र धर्म मानने वाले सूफीमत के कवि परमात्मा और स्वयं के रिश्ते को आशिक और माशूक का रिश्ता मानते हैं। प्रस्तुत है महान सूफी शायर नज़ीर अकबराबादी की एक महान रचना-

है आशिक और माशूक जहां, वां शाह वज़ीरी है बाबा,
नै रोना है नै धोना है, नै दर्द असीरी है बाबा ।


दिन रात बहारें चुहले हैं, औ ऐश सफीरी है बाबा,
जो आशिक हुए सो जाने है, यह भेद फ़कीरी है बाबा।


हर आन हंसी हर आन खुशी, हर वक्त अमीरी है बाबा,
जब आशिक मस्त फ़कीर हुए, फिर क्या दिलगीरी है बाबा।


कुछ ज़ुल्म नहीं कुछ ज़ोर नहीं, कुछ दाद नहीं फरियाद नहीं,
कुछ क़ैद नहीं कुछ बंद नहीं, कुछ जब्र नहीं आज़ाद नहीं।


शागिर्द नहीं उस्ताद नहीं, वीरान नहीं आबाद नहीं,
है जितनी बातें दुनिया की, सब भूल गए कुछ याद नहीं।


जिस सिम्त नज़र कर देखे हैं, उस दिलवर की फुलवारी है,
कहीं सब्ज़ी की हरियाली है, कहीं फूलों की गुलक्यारी है।


दिन रात मगन ख़ुश बैठे हैं, और आस उसी की भारी है,
बस आप ही वो दातारी हैं, और आप ही वो भंडारी हैं।


हम चाकर जिसके हुस्न के हैं, वह दिलबर सबसे आला है,
उसने ही हमको जी बख़्शा, उसने ही हमको पाला है ।


दिल अपना भोला भाला है, और इश्क बड़ा मतवाला है,
क्या कहिए और नज़ीर आगे, अब कौन समझने वाला है।


हर आन हंसी हर आन ख़ुशी, हर वक़्त अमीरी है बाबा,
जब आशिक मस्त फकीर हुए , फिर क्या दिलगीरी है बाबा।



12 comments:

ZEAL said...

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महेंद्र जी,

आपकी posts तो अनमोल हैं , हिंदी साहित्य के लिए। चुन-चुन के नगीने लगे हैं आपके ब्लॉग पर। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका आभार।

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Shekhar Kumawat said...

aap ne sahi kaha tha

acha laga aap ke blog par aakar

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्मा साहब,
बहुत सांति मिला एहाँ आकर..सच पूछिए तो ऐसा ऐसा लोग सदी में एक बार जन्म लेते हैं!!
बहुत अच्छा चयन!!

Apanatva said...

nazeer sahab se parichay karwane v unakee rachanae padwane ke liye ke liye dhanyvaad .

Mumukshh Ki Rachanain said...

नज़र साहब की रचना से रु-ब-रु करने का शुक्रिया.
मन की बगिया सचमुच खिल गयी इसे पढ़ कर.
हार्दिक आभार..........

चन्द्र मोहन गुप्त

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

खूबसूरत! मुकम्मल! रूहानी! मस्तमौला!
आशीष

ashish said...

बहुत बढ़िया , आपके ब्लॉग पर आकर शुकून मिलता है

महेन्‍द्र वर्मा said...

आप सभी के प्रति आभार...मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए।

Urmi said...

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
नज़ीर जी से रूबरू करवाने के लिए और उनकी रचनाएँ पढ़वाने के लिए आपका धन्यवाद!

स्वप्निल तिवारी said...

nazeer saab bahumulya hain .....aur roohani kalaam to alag hi rang liye nikalte the unki kalam se ..aapne behtareen ghazlen baaateen hain humse ..bahut bahut shukriya sir

ज्योति सिंह said...

हर आन हंसी हर आन खुशी, हर वक्त अमीरी है बाबा,
जब आशिक मस्त फ़कीर हुए, फिर क्या दिलगीरी है बाबा।


कुछ ज़ुल्म नहीं कुछ ज़ोर नहीं, कुछ दाद नहीं फरियाद नहीं,
कुछ क़ैद नहीं कुछ बंद नहीं, कुछ जब्र नहीं आज़ाद नहीं।

laazwaab hai ,man prasnn ho gaya yahan aane se ,

vijai Rajbali Mathur said...

Mahendraji,
Ek bar phir se aapke blog ne Nazir Akbarabadi se sampark kara diya,jab ham Agra me the tab C.p.I.,C.P.M.dwara aayojit Nazir Akbarabadi ki Mazar per karyakramon me bhag liya hai.Capt.Bhagwan Das jis karyakram me padhare the usme T.V.per mera bhi photo display ho gaya tha.