आप भी






‘ग़र अकेले ऊब जाएं आप भी,
आईने से दिल लगाएं आप भी।


देखिए शम्आ की जानिब इक नज़र,
ज़िदगी को यूं लुटाएं आप भी।


हर अंधेरे में नहीं होता अंधेरा,
आंख से परदा हटाएं आप भी।


जान लोगे लोग जीते किस तरह हैं,
इक मुखौटा तो लगाएं आप भी।


भूल जाएं रंज अब ऐसा करें,
साथ मेरे गुनगुनाएं आप भी।


सब इसे कहते, ख़ुदा की राह है,
आशिक़ी को आज़माएं आप भी।


मैं कबीरा की लुकाठी ले चला हूं,
हो सके तो साथ आएं आप भी।

                                                       -महेन्द्र वर्मा

35 comments:

monali said...

Very impressive.. specially these lines
हर अंधेरे में नहीं होता अंधेरा,
आंख से परदा हटाएं आप भी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

‘ग़र अकेले ऊब जाएं आप भी,
आईने से दिल लगाएं आप भी।

बहुत खूब .और मुखौटे वाला शेर भी बढ़िया है ...

Sunil Kumar said...

सब इसे कहते, ख़ुदा की राह है,
आशिक़ी को आज़माएं आप भी।
अच्छी सलाह दे रहें आप , हर शेर जोरदार एक अर्थ छिपाए हुए , बधाई

vijai Rajbali Mathur said...

काश लोग उसी सन्दर्भ में लें जिसमें आपने एक गूढ़ सन्देश को सरल ढंग से कहा है,तो उनका भला हो जाये.

Shikha Kaushik said...

har sher gajab dhha raha hai .bhavpurn abhivyakti .badhai .

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

महेंद्र जी!
लगता है मुझे आप अपना शागिर्द बनाकर ही दम लेंगे...
आपके हम हो गए तो हैं मुरीद
हाथ मेरे सर फिराएं आप भी.

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इस शेर में आखिरी "हैं" निकाल दें, बहर से बाहर है. शेर इस तरह भी मुकम्मल है:
जान लोगे लोग जीते किस तरह,
इक मुखौटा तो लगाएं आप भी।
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महेंद्र जी, कमाल के शेर कहे हैं आपने..

मनोज कुमार said...

सब इसे कहते, ख़ुदा की राह है,
आशिक़ी को आज़माएं आप भी।
आपने तो दिल जीत लिया। और दिमाग को भी ...
मैं कबीरा की लुकाठी ले चला हूं,
हो सके तो साथ आएं आप भी।

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

हर अंधेरे में नही होता अंधेरा,
आंखों से परदा हटायें आप भी।

बेहतरीन मिसरा । मुबारक

Amit Chandra said...

बेहद उम्दा। बधाई स्वीकार करें।

ashish said...

जान लोगे लोग जीते किस तरह हैं,
इक मुखौटा तो लगाएं आप भी।

मुखौटा लगाकर छुपे है सब . सुन्दर शेरो से सजी ग़ज़ल .

उपेन्द्र नाथ said...

har nazm bahoot hi sunder..........
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मैं कबीरा की लुकाठी ले चला हूं,
हो सके तो साथ आएं आप भी।
nimantran swikar ahi........bahoot sunder prastuti.

Bharat Bhushan said...

आपकी ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए लफ़्ज़ चुक गए हैं. केवल वाह..वाह.. ही आ रही है. भई वाह..

sm said...

beautiful gazal

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

जान लोगे लोग जीते किस तरह हैं,
इक मुखौटा तो लगाएं आप भी।

बहुत ही सुन्दर अलफ़ाज़ से सजी ग़ज़ल है !

ZEAL said...

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हर अंधेरे में नहीं होता अंधेरा,
आंख से परदा हटाएं आप भी।

महेंद्र जी ,
क्या खूब चुन-चुन कर जीवन-दर्शन को पिरोया है ग़ज़ल में।
आपका आभार।

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कडुवासच said...

हर अंधेरे में नहीं होता अंधेरा,
आंख से परदा हटाएं आप भी।
... bahut khoob ... sabhee sher ek se badhakar ek ... prasanshaneey gajal !!!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

महेंद्र जी,
क्या बात कही है -
हर अंधेरे में नहीं होता अंधेरा,
आंख से परदा हटाएं आप भी।
पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

दिगम्बर नासवा said...

देखिए शम्आ की जानिब इक नज़र,
ज़िदगी को यूं लुटाएं आप भी।
वाह क्या बात है महेंद्र जी ... जिंदगी लिटाने वाली बात आपने खूब कही ... शमा पर तो सब कुछ कुर्बान है .....
हर अंधेरे में नहीं होता अंधेरा,
आंख से परदा हटाएं आप भी..
उफ़ .. क्या शेर कहा है ... जावन का सत्य है ये .. इंसान बस आँखें मेच कर बैठा अहता है .. सामना नहीं करता और सत्य नहीं जान पाटा ...

कमाल की ग़ज़ल है ...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

'main kabeera ki lukathi le chala hoon
ho sake to saath aayen aap bhi,
lajawab!

Majaal said...

रूमानियत को फलसफों में ढाल कर,
शायरी बहुत खूब बनाए आप भी ...

जारी रखिये ...

JAGDISH BALI said...

वाह ! बहुत खूब !

Anonymous said...

आपकी यह सशक्त और सुन्दर रचना
आज के चर्चा मंच पर सुशोभित की गई है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html

Rahul Singh said...

लुकाठी हाथों में दिख जाती है आजकल, लेकिन सब अपने अपने रस्‍ते पर हैं.

vandana gupta said...

क्या कहूँ इस गज़ल के बारे मे…………सभी शेर कमाल हैं……………बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

महेन्‍द्र जी, हमेशा की तरह शानदार है आपकी यह भी गजल। हार्दिक शुभकामनाऍं एवं बधाई।

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आपका सुनहरा भविष्‍यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्‍या जानते हैं?

अनुपमा पाठक said...

मैं कबीरा की लुकाठी ले चला हूं,
हो सके तो साथ आएं आप भी
वाह!
बहुत सुन्दर !

नीरज गोस्वामी said...

देखिए शम्आ की जानिब इक नज़र,
ज़िदगी को यूं लुटाएं आप भी।

वाह...सुभान अल्लाह...छोटी बहर में कमाल की गज़ल...दाद कबूल करें.

नीरज

Kunwar Kusumesh said...

मैं कबीरा की लुकाठी ले चला हूं,
हो सके तो साथ आएं आप भी।

सभी शेर अच्छे परन्तु ये बेहतरीन .

खबरों की दुनियाँ said...

भूल जाएं रंज अब ऐसा करें,
साथ मेरे गुनगुनाएं आप भी . अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
नमस्कार !
.........यह गजल भी कमाल की हैं.

संजय भास्‍कर said...

Maaf kijiyga kai dino bahar hone ke kaaran blog par nahi aa skaa

केवल राम said...

ग़र अकेले ऊब जाएं आप भी,
आईने से दिल लगाएं आप भी।
xxxxxxxxxxxxxxxxxx
हर शेर लाजबाब है ...शुक्रिया

रंजना said...

हर अंधेरे में नहीं होता अंधेरा,
आंख से परदा हटाएं आप भी।


ओह....क्या बात कही है आपने...

वैसे बड़ी समस्या है..किस शेर को सिरमौर कहें और किसे कुछ कम...एक भी ऐसा नहीं...

लाजवाब लिखा है आपने....

आनंद आ गया पढ़कर...

आभार आपका पढने का सुअवसर देने के लिए.....

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

महेन्‍द्र जी छोटी छोटी बहरों में आपने काफी बडी बडी बातें कर दीं। बधाई।

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मोबाइल चार्ज करने की लाजवाब ट्रिक्‍स।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वहा महेंद्र ही बहुत सुंदर लिखा है आपने. पढ़वाने के लिए आभार आपका.