गीतिका





एक दिया तो जल जाने दे,
सूरज को कुछ सुस्ताने दे।


पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।


एक सिरा तो थामो तुम भी,
उलझा है जो सुलझाने दे।


चिंगारी रख ऐसी दिल में,
अंगारों को शरमाने दे।


कैद न कर पंछी पिंजरे में,
उसे मुक्ति का सुर गाने दे।


यादें, इतनी जल्दी न जा,
आंखों को तो भर जाने दे।


बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।

                                           -महेन्द्र वर्मा


35 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

एक दिया तो जल जाने दे,
सूरज को कुछ सुस्ताने दे।

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।
बहुत खूब .......सहजता से जीवन का अर्थ समेट लिया इन पंक्तियों में..........

केवल राम said...

बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।


भावनाओं को सहजता से अभिव्यक्त किया है आपने ...

Anonymous said...

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।


एक सिरा तो थामो तुम भी,
उलझा है जो सुलझाने दे।

kya baat hai sir....sunday subah subah mehfil jama di....bohot khoob !

Amrita Tanmay said...

बहुत ही सुन्दर रचना.....शुभकामनायें|

राज भाटिय़ा said...

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।

वाह जनाब, बहुत सुंदर गजल धन्यवाद

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

vijai Rajbali Mathur said...

यथार्थ भावों की अभिव्यक्ति सुन्दर तरीके से की है.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्मा सा! कमाल की ग़ज़ल है.. आपने जो भी कहा है सब लाजवाब है.. आपके अशार रूमानियत से दूर हक़ीक़त की एक ऐसी दुनिया तामीर करते हैं कि सुनने वाला हर शेर पर सोचने को मजबूर हो जाता है!! ये शेर वाह वाह से ज़्यादा अपनी अनुगूँज पैदा करते हैं दिलो दिमाग़ पर!!
(इसे तो और छोटी बहर में भी कहा जा सकता था)

Sunil Kumar said...

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।
हर शेर कुछ सन्देश दे रहा है और आपने में एक अर्थ छिपाए हुए है बहुत सुंदर, बधाई

Patali-The-Village said...

आपने भावनाओं को सहजता से अभिव्यक्त किया है| धन्यवाद|

Udan Tashtari said...

बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।


वाह! उम्दा शेर!!

Sushil Bakliwal said...

बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।

उत्तम प्रस्तुति. वाह...

उपेन्द्र नाथ said...

यादें, इतनी जल्दी न जा,
आंखों को तो भर जाने दे।
बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।
mahendra ji bahut hi gahre ehsas ke sunder nazm....

mark rai said...

एक दिया तो जल जाने दे,
सूरज को कुछ सुस्ताने दे.......
.....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

Dr.J.P.Tiwari said...

एक सिरा तो थामो तुम भी,
उलझा है जो सुलझाने दे।


चिंगारी रख ऐसी दिल में,
अंगारों को शरमाने दे।
BEHAD PRABHAWSHAALI ANDAAZ AUR SAARGARBHIT SAMPRESHAN.

Kailash Sharma said...

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।

बहुत सार्थक और प्रभावी गज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा..

Satish Saxena said...

बड़ी प्यारी सौम्य रचना लगी ..आनंद आ गया ! शुभकामनायें आपको !

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

'क़ैद न कर पंछी पिंजरे में
उसे मुक्ति का सुर गाने दे '
उम्दा शेर..सुन्दर ग़ज़ल

Arvind Jangid said...

बहुत ही सुन्दर रचना, आभार.

राजेश सिंह said...

बरसें, झूम कर बरसों बरस बरसें.

'साहिल' said...

यादें, इतनी जल्दी न जा,
आंखों को तो भर जाने दे।


बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।

साधारण शब्दों में बहुत ही उत्कृष्ट ग़ज़ल कही है आपने..........

ZEAL said...

.

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे॥

वाह! क्या बात लिखी है महेंद्र जी , आनंद आ गया ।

.

Kunwar Kusumesh said...

अभी अभी आपकी सुन्दर - सी ग़ज़ल पढ़ी.निम्न शेर पर जैसे ही नज़र पड़ी,मज़ा गया.

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे

आइना तो सच बोलेगा ही. ज़िया नटहौरी साहब का एक शेर याद आ गया . आप भी देखिये:-
अब तो मुमकिन ही नहीं दौरे-जहालत का इलाज,
आइना जिसको दिखाया वो बुरा मान गया.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी

सादर सस्नेहाभिवादन !

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने -
एक दिया तो जल जाने दे,
सूरज को कुछ सुस्ताने दे।

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।

सारे अश्'आर कुछ न कुछ कहने को प्रेरित करते हैं
वाह ! बहुत बढ़िया !

♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं! :)

बसंत ॠतु की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जीवन के सार को सजों दिया आपने।

---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्‍वास:महिलाएं बदनाम क्‍यों हैं?

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
नमस्कार !
एक अर्थ छिपाए हुए है बहुत सुंदर, बधाई
प्रेमदिवस की शुभकामनाये !

वन्दना अवस्थी दुबे said...

एक सिरा तो थामो तुम भी,
उलझा है जो सुलझाने दे।
क्या बात है महेन्द्र जी. बहुत सुन्दर.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

महेंद्र जी ..आपकी गजल हमेशा लाजवाब होती है... बहुत सुन्दर ... आपकी गज़ल कल चर्चामंच पर होगी... शुक्रवार को... आप वह भी आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा ...सादर

http://charchamanch.blogspot.com

अजय कुमार said...

शानदार रचना

Atul Shrivastava said...

सभी शेर कुछ न कुछ संदेश लिए हुए है।
खासकर, 'पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।'
शानदार, जानदार, मजेदार रचना।

Sadhana Vaid said...

बादल हूं बरसूंगा, पहले
परवत से तो टकराने दे।

जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी ! हर शेर लाजवाब और हर लफ्ज़ बेशकीमती है ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

उलझा है जो सुलझाने दे।
बहुत खूब महेंद्र भाई| सुंदर ग़ज़ल|

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

क्या कहूँ ... कुछ भी कहने के लिए जगह कहाँ छोड़ी आपने ... हरेक शेर बेहतरीन है ... एकदम गजब !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पलट रहा क्यूं आईने को,
जो सच है वो दिखलाने दे।

बहुत खूबसूरत गज़ल ...हर शेर मुक्कमल ..

Bharat Bhushan said...

चिंगारी रख ऐसी दिल में,
अंगारों को शरमाने दे।

सुंदर गज़ल मन में उतरती है.