ग़ज़ल
रचनाकार में पूर्व प्रकाशित
कोई शख़्स ग़म से घिरा लग रहा था,
हुआ जख़्म उसका हरा लग रहा था।
मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी,
किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था।
ये चाहा कि इंसां बनूं मैं तभी से,
सभी की नज़र से गिरा लग रहा था।
लगाया किसी ने गले ख़ुशदिली से,
छुपाता बगल में छुरा लग रहा था।
मैं आया हूं अहसान तेरा चुकाने,
ये जिसने कहा सिरफिरा लग रहा था।
जो होने लगे हादसे रोज इतने,
सुना है ख़ुदा भी डरा लग रहा था।
ग़र इंसाफ तुझको दिखा हो बताओ,
वो जीता हुआ या मरा लग रहा था।
-महेन्द्र वर्मा
28 comments:
ग़र इंसाफ तुझको दिखा हो बताओ,
वो जीता हुआ या मरा लग रहा था।
शानदार शेर और एक मुकम्मल गजल। आभार।
बहुत उम्दा ग़ज़ल,महेंद्र जी.
दो अशआर तो दिल पर घाव कर गए हैं....
ये चाहा कि इंसां बनूं मैं तभी से,
सभी की नज़र से गिरा लग रहा था।
मैं आया हूं अहसान तेरा चुकाने,
ये जिसने कहा सिरफिरा लग रहा था।
ये शेर मेरी तरफ से समझ लें.
कोई शख़्स ग़म से घिरा लग रहा था,
हुआ जख़्म उसका हरा लग रहा था।
सलाम
जमाने का अक्स.
बदलते सामाजिक मूल्यों की सच्ची तस्वीर!! वर्मा साहब, एक बात मेरे जीवन की घटना से मिलती सी लगी.. करीब १६साल पहले की घटना है.. मेरे वरिष्ठ प्रबंधक ने किसी कार्यपालक के सामने मेरी पीठ ठोंककर कहा कि यह बहुत अच्छा काम करता है. तो मैंने उनसे कहा था कि मुझे इसकी तनख्वाह मिलती है. और आइन्दा मेरी पीठ न ठोंका करें, लगता है कोई छुरा घोंपने की जगह ढूंढ रहा है पीठ में!!आज आपने बता दिया:
.
लगाया किसी ने गले ख़ुशदिली से,
छुपाता बगल में छुरा लग रहा था।
Bahut umda bhav aur lajawab parstuti.
mai aayaa hun ahsaan teraa chukaane, ye jisne bhi kahaa sarfiraa lagataa hai, laazwaaba ,badhaai warmaa ji.
मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी,
किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था।
क्या सही बात कह दी।
ग़र इंसाफ तुझको दिखा हो बताओ,
वो जीता हुआ या मरा लग रहा था।
बेहतरीन भाव लिए पंक्तियाँ ...बहुत बढ़िया
मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी,
किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था।
ये चाहा कि इंसां बनूं मैं तभी से,
सभी की नज़र से गिरा लग रहा था।
आदरणीय महेंद्र जी नमस्कार ! आज की सामाजिक स्थिति में बहुत ही सार्थक कविता.
आपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं
आज के सामाजिक परिवेश को सच्चाई से बयाँ कर दिया है ...
लगाया किसी ने गले ख़ुशदिली से,
छुपाता बगल में छुरा लग रहा था।
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जो होने लगे हादसे रोज इतने,
सुना है ख़ुदा भी डरा लग रहा था।
ग़र इंसाफ तुझको दिखा हो बताओ,
वो जीता हुआ या मरा लग रहा था।
kya baat hai ,laazwaab .
बड़े सलीके से हर शेर कहा है आपने महेंद्र जी.
मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी,
किसी को मग़र ये बुरा लग रहा था।
क्या बात है,हर शेर लाजवाब है.
दर्द को बाखूबी पिरोते हैं आप ग़ज़लों में.
वाह! बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...
.
मैं आया हूं अहसान तेरा चुकाने,
ये जिसने कहा सिरफिरा लग रहा था॥
जो चुकाया जा सके , उसे एहसान नहीं कहते । जाने क्यूँ लोग करते हैं कोशिशें करते हैं चुकाने की । मेरी तो कोशिश है वो , दो-चार एहसान और कर दें मुझपर । हमको यूँ ही उनकी याद में जीना अच्छा लगता है ।
.
सामाजिक सोच का वास्तविक आईना लग रहा है आपकी इस प्रस्तुति में. उत्तम...
आदरणीय महेंद्र जी
नमस्कार !
आज की सामाजिक स्थिति में बहुत ही सार्थक कविता...बहुत सुन्दर..
लगाया किसी ने गले ख़ुशदिली से,छुपाता बगल में छुरा लग रहा था
आज के सामाजिक मूल्यों की सच्ची तस्वीर आप की इस गजल में बाया होती दिख रही है
हर शेर शानदार . समाज का आइना दिखती बेहतरीन ग़ज़ल .
"मैं आया हूं अहसान तेरा चुकाने,
ये जिसने कहा सिरफिरा लग रहा था।"
आजके समय में अहसान चुकाने की बात, ये तो साहब बात ही सिरफ़िरों वाली है।
achha sandesh deti rachna...
badhaai
जो होने लगे हादसे रोज इतने,
सुना है ख़ुदा भी डरा लग रहा था।
ग़ज़ल में मौज़ूदा हालात की तस्वीर का एक एक रंग उभर कर मुखरित हुआ है !
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए शुक्रिया !
ये चाहा कि इंसां बनूं मैं तभी से,
सभी की नज़र से गिरा लग रहा था ..
लाजवाब ग़ज़ल है महेंद्र जी ... और ये शेर तो बहुत ही कमाल है ...
मेरे दोस्त ने की है तारीफ़ मेरी
किसी को मगर ये बुरा लग रहा था
**************************
महेंद्र जी ,
बहुत सुन्दर ग़ज़ल और हर शेर खुद बखूबी बयां हो रहा है |
लाजवाब ग़ज़ल है ... हरेक शेर जैसे नगीने हैं ... क्या तारीफ़ करूं ऐसी बेहतरीन ग़ज़ल की ...
Harek ashaar lajavab...dil ko kai ahsas se bharne vali...behtareen gajal...badhai
भाई महेंद्र जी आपकी गज़ल लाजवाब है |बधाई |
मैं आया हूं अहसान तेरा चुकाने,
ये जिसने कहा सिरफिरा लग रहा था।
badhiya sher............
तजुर्बे वाली ग़ज़ल| हर शेर पुरअसर| लाजवाब कहन| बहुत खूब महेंद्र भाई बहुत खूब|
Post a Comment