राजपाट छोड़कर सन्यास ग्रहण करने वाली विभूतियों में संत नागरी दास जी का नाम अग्रगण्य है। आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व राजस्थान के किशनगढ़ राज्य के राजा सावंतसिंह ने वैराग्य ग्रहण कर शेष जीवन ईश्वरभक्ति और काव्य सृजन में व्यतीत किया था।
इनका जन्म वि. सं. 1756, पौष कृष्ण 13 को हुआ था। गुरु श्री वृंदावनदेवाचार्य से इन्होंने दीक्षा प्राप्त की। गुरु की प्रेरणा से वि. सं. 1780 में संत नागरी दास जी ने सर्वप्रथम मनोरथ मंजरी नामक ग्रंथ की रचना की। इसके पश्चात आने वाले वर्षों में उन्होंने अनेक काव्यग्रंथों की रचना की, जिनमें से प्रमुख ये हैं- रसिक रत्नावली, विहार चंद्रिका, निकुंज विलास, ब्रजयात्रा, भक्तिसार, पारायणविधिप्रकाश, कलिवैराग्यलहरी, गोपीप्रेमप्रकाश, ब्रजबैकुंठतुला, भक्तिमगदीपिका, फागविहार, युगलभक्तिविनोद, बालविनोदन, वनविनोद, सुजनानंद, तीर्थानंद और वनजनप्रशंसा। इन सभी ग्रंथों का संकलन ‘नागर समुच्चय‘ नाम से प्रकाशित हो चुका है।
संत नागरी दास जी ने वि. सं. 1821 में वृंदावन में मुक्ति प्राप्त की।
प्रस्तुत हैं, संत नागरी दास जी के कुछ नीतिपरक दोहे-
जहां कलह तहं सुख नहीं, कलह सुखनि कौ सूल,
सबै कलह इक राज में, राज कलह कौ मूल।
दिन बीतत दुख दुंद में, चार पहर उत्पात,
बिपती मरि जाते सबै, जो होती नहिं रात।
मेरी मेरी करत क्यों, है यह जिमी सराय,
कइ यक डेरा करि गए, कई किए कनि आय।
द्रुम दौं लागैं जात खग, आवैं जब फल होय,
संपत के साथी सबै, बिपता के नहिं कोय।
नीको हू लागत बुरा, बिन औसर जो होय,
प्रात भई फीकी लगै, ज्यों दीपक की लोय।
शत्रु कहत शीतल वचन, मत जानौ अनुकूल,
जैसे मास बिसाख में, शीत रोग कौ मूल।
काठ काठ सब एक से, सब काहू दरसात,
अनिल मिलै जब अगर कौ, तब गुन जान्यो जात।
28 comments:
संत नागरी दास जी के बारे में जानकारी देने , और उनके दोहे पढ़वाने के लिय आभार
aapne sant nagri das ji ka bahut sundar parichay prastut kiya hai ek bar fir aap apne purane style me nazar aayen hain .aapki post bahut dino bad dikhai dee hai achchha laga.aapke swasthya ke liye hamari aur se shubhkamnayen.
संत नारंगी दास जी के बारे में पहली बार ही पढ़ा है ..इस जानकारी हेतु साधुवाद ... सारे दोहे बहुत अच्छे लगे ..
संत नागरी दास जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा ....
सभी दोहे शिक्षाप्रद और जीवनोपयोगी ....
बहुत सुन्दर जानकारी डी है आपने संत नागरीदासजी के बारे में.
दोहे प्रेरणापूर्ण और सुन्दर ज्ञान प्रदान कर रहें हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.नई पोस्ट जारी की है.
संत नागरी दास जी के बारे में पहली बार आपके माध्यम से जानकारी मिली। नीति के दोहे बहुत अच्छे लगे।
नीको हू लागत बुरा, बिन औसर जो होय,
प्रात भई फीकी लगै, ज्यों दीपक की लोय।
शत्रु कहत शीतल वचन, मत जानौ अनुकूल,
जैसे मास बिसाख में, शीत रोग कौ मूल।
सुंदर चिंतन लिए दोहे....
वर्मा साहब!
कई संत कवियों का परिचय एवं उनके भक्ति काव्य से परिचय आपके ही माध्यम से हुआ... संत नागरी दास उसी श्रृंखला की एक कड़ी हैं.. बहुत ही सरल एवं अनुकरणीय वाणी है उनकी! नमन ऐसे संतों को!! और आभार आपका, इनसे परिचय के लिए!
संत नागरीदास जी के सूजन से लाभान्वित कराने का शुक्रिया।
------
तांत्रिक शल्य चिकित्सा!
…ये ब्लॉगिंग की ताकत है...।
सटीक और सदैव प्रासंगिक दोहे.
संत नागरीदास जी के दोहे हर युग में प्रासंगिक रहेंगे.उपयोगी प्रस्तुति.इस युग में तो हम आपके दोहों के कायल हैं.
वाह .. कितना सहज ही कह गए हैं जीवन के रहस्यों को सभी संत ... बहुत लाजवाब ...
सभी दोहे एक से बढ़कर एक।
ऐसी विभूति का परिचय आपके माध्यम से प्राप्त हो रहा है, आभारी हैं।
महान संतों के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय कराने का आपका प्रयास निश्चय ही सराहनीय है...बहुत ज्ञानवर्धक आलेख..आभार
विद्वान और उस में भी संत विद्वानों की वाणी के बारे में कोई क्या कहे| झूम रहे हैं और आप को बार बार साधुवाद दे रहे हैं|
एक जिज्ञासा रह गई है, क्या ये तटीय स्थान, वृंदावन वाले नागरी दास जी हैं?
हां नवीन जी, ये वही नागरी दास जी हैं।
बहुत ज्ञानवर्धक,
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
संत नागरी -दास के नीतिपरक दोहे पढवा कर आपने बड़ा उपकार किया है .कुछ दोहे हमने नोट भी किये हैं ,शुक्रिया .सद-साहित्य ही आपकी प्रेरणा का स्रोत रहा है रहे ऐसी कामना है .
संत नागरी दास तथा उनकी रचनावों से परिचय कराने का बहुत-बहुत धन्यवाद
सुन्दर नीतिपरक दोहे . शब्द नहीं मिल रहे है टिप्पणी के लिए .धन्यवाद .
संत नागरी दास जी के बारे में बहुत ही अच्छी और महत्वपूर्ण जानकारी मिली! सभी दोहे लाजवाब लगा !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सभी दोहे शिक्षाप्रद और जीवनोपयोगी ....संत नागरी दास जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा ....
द्रुम दौं लागैं जात खग, आवैं जब फल होय,
संपत के साथी सबै, बिपता के नहिं कोय।
क्या बात है. आपके ब्लॉग पर कई ऐसे संतों की वाणी पढ़ने को मिली जिनके बारे में पहले जानकारी नहीं थी. आभार आपका.
बहुत सुंदर,
क्या बात है
संत नागरीदास के बारे में बताने के लिए आभार . ना जाने कितने संत कवियों से भारी रही है हमारी उर्वरा जन्मभूमि .
Santon ke anmol vachan prastuti ke liye aabhar!
.
जहां कलह तहं सुख नहीं, कलह सुखनि कौ सूल,
सबै कलह इक राज में, राज कलह कौ मूल।
आज की jyadatar परेशानियों के मूल में गृह-क्लेश ही है. नयी पीढ़ी इसी क्लेश के कारण samuchit vikaas नहीं कर paa रही . sadbhaav और swasth vatavaran से vanchit हो रही है.
sant parichay के लिए साधुवाद !
.
सराहनीय काम किया है। बहुत बहुत साधुवाद
Post a Comment