समर भूमि संसार है, विजयी होते वीर,
मारे जाते हैं सदा, निर्बल-कायर-भीर।
मुँह पर ढकना दीजिए, वक्ता होए शांत,
मन के मुँह को ढाँकना, कारज कठिन नितांत।
दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।
भाँति-भाँति के सर्प हैं, मन जाता है काँप,
सबसे जहरीला मगर, आस्तीन का साँप।
हो अतीत चाहे विकट, दुखदायी संजाल,
पर उसकी यादें बहुत, होतीं मधुर रसाल।
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।
प्राकृत चीजों का सदा, कर सम्मान सुमीत,
ईश्वर पूजा की यही, सबसे उत्तम रीत।
-महेन्द्र वर्मा
37 comments:
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।
Bahut Hi Sunder Dohe....
bahut sundar,umda dohe hain ek se badhkar ek.
सभी दोहे उत्तम
bahut hi sundar dohe padhkar kabeerdas ji yaad aa gaye.
अद्भुत दोहे आपके, जीवन भर का ज्ञान,
हीरे पाए जात हैं ज्यूं कोयले की खान!
दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।
सार्थक सीख देते उत्तम दोहे।
दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।
हर दोहा उत्तम दोहा ,नीति परक और नीक
अनुभव-अध्ययन संतुलन, सोलह आने ठीक.
वाह! बहुत बढ़िया दोहे हैं सर....
सादर बधाई...
बहुत सुन्दर और शानदार दोहे लिखे हैं आपने ! हर एक दोहे एक से बढ़कर एक है! बधाई!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।
लाजबाब और बेमिसाल दोहे ...
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।
सच है विपदा से अनुभव मिलता है ....
हर पंक्ति सुंदर सिख देती है !
आभार मेरे ब्लॉग पर आने का !
bahut hi achche dohe...aabhar
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 19-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।
बहुत अच्छे दोहे
बहुत बढ़िया दोहे!
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।
...bahut hi badhiyaa
सभी दोहे बहुत सुंदर बन पड़े हैं. यह तो हर मन प्यारा लग रहा है-
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।
क्या बात है!!
वाह ...बहुत खूब ।
बहुत सुंदर दोहे...हरेक दोहा एक सुंदर सीख देते हुए..
समर भूमि संसार है, विजयी होते वीर,
मारे जाते हैं सदा, निर्बल-कायर-भीर।
सार्थक दोहे................
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार...
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Fantastic couplets Mahendra ji . Sweet fragrance of your indepth knowledge is quite evident in this creation. Each couplet is providing an effective solution in difficult situations.
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सभी दोहे बहुत ही सुन्दर सीख देते हुए..
इन दोहों के साथ आपकी अन्य कविताएं भी पढ डालीं हैं । गीतिका --दिन ,क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं ।
आ. वर्मा जी आप के ये सात दोहे, सात दोहे न हो कर सात समंदरों से निकले हुए रत्नों के समान हैं। हर दोहा किसी न किसी सिद्धान्त की सम-सामयिकता को अधिक प्रासंगिक बना रहा है। आप के ब्लॉग पर आना एक बार फिर सुकार्थ हुआ। नमन। इस बार मैं किसी एक दोहे को कोट नहीं कर पा रहा, फिर भी ईश्वर पूजा वाला दोहा पढ़ कर अत्यधिक गदगद हुआ जा रहा हूँ।
दोहे अच्छे लगे । पीछे वाली भी कुछ पोस्ट देखी हैं । दिन कविता ,क्षणिकाएं आदि शानदार रचनाएं हैं ।
Very Nice post our team like it thanks for sharing
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।
बहुत ही शिक्षाप्रद,प्रेरक व अनूठी प्रस्तुति है आपकी.
पढकर मन प्रसन्न हो गया है.
बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,महेंद्र भाई.
अच्छी रचना .
दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।
जीवन का सार तत्व तात्विक विवेचना लिए हैं ये दोहे .
@ प्राकृत चीजों का सदा, कर सम्मान सुमीत,
ईश्वर पूजा की यही, सबसे उत्तम रीत।
# सार्थक रचना द्वारा अनुपम सन्देश !
सुन्दर भाव लिए ... लाजवाब हैं सभी दोहे ....
भाँति-भाँति के सर्प हैं, मन जाता है काँप,
सबसे जहरीला मगर, आस्तीन का साँप।
....सभी दोहे बहुत सुंदर और सार्थक...
दुख के भीतर ही छुपा, सुख का सुमधुर स्वाद,
लगता है फल, फूल के, मुरझाने के बाद।
sundar dohe.
बेहतरीन दोहे,मुझे ऐसा लगा कि कबीर दास जी के दोहे पढ़ रहा हूँ,..लाजबाब रचना,...बधाई
मेरी नई पोस्ट के लिए काव्यान्जलि मे click करे
Anmol motee fir bikhara hee diye aapne .
सभी दोहे अति उत्तम है...
खासकर ये...
विपदा को मत कोसिए, करती यह उपकार,
बिन खरचे मिलता विपुल, अनुभव का उपहार।...
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