मौन का सहरा हुआ हूँ


आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।

उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

देख लो तस्वीर मेरी,
वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।

बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।

आज बचपन के अधूरे, 

ख़्वाब-सा बिखरा हुआ हूँ

घुल रहा हूँ मैं किसी की
आँख का कजरा हुआ हूँ।

रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।
                                      -महेन्द्र वर्मा

46 comments:

Vandana Ramasingh said...

आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।
बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।
रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।

बहुत खूबसूरत गज़ल

प्रतिभा सक्सेना said...

उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

देख लो तस्वीर मेरी,
वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।
- बहुत सधी और निखरी अभिव्यक्ति !

Madhuresh said...

बहुत खूबसूरत गज़ल !!

संजय भास्‍कर said...

वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, कितनी सादगी, कितना प्यार भरा जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......

Rahul Singh said...

खूब है ठहरे हुए वक्‍त की तस्‍वीर.

ashish said...

सुँदर तस्वीर उकेरी है . साधुवाद

Dr.NISHA MAHARANA said...

रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।waah gazab ki abhiwaykti mahendra jee.....

virendra sharma said...

रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।
खाब एक ठहरा हुआ हूँ .बहुत उम्दा ग़ज़ल .झुर्रियों वाला चेहरा उभर आता है इसे पढ़ते पढ़ते हिन्दुस्तान के बुढापे का .

virendra sharma said...

खाब एक ठहरा हुआ हूँ .बहुत उम्दा ग़ज़ल .झुर्रियों वाला चेहरा उभर आता है इसे पढ़ते पढ़ते हिन्दुस्तान के बुढापे का .
बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।
खाब एक ठहरा हुआ हूँ .बहुत उम्दा ग़ज़ल .झुर्रियों वाला चेहरा उभर आता है इसे पढ़ते पढ़ते हिन्दुस्तान के बुढापे का . रहनुमा ऐसा रहा हूँ (काग्भगोड़े अपने मनमोहना याद आगये ).

रविकर said...

महेंद्र जी एक और सशक्त प्रस्तुति ।

S.N SHUKLA said...

बहुत समर्थ सृजन, बधाई.

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...........

बहुत बहुत बढ़िया.............
लाजवाब प्रस्तुति....

सादर.

Anupama Tripathi said...

आज कि प्रस्तुति का कोई जवाब नाहीं ...!लाजवाब है ...!एक-एक शेर अत्यंत गहराई लिए हुए ....!!
बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ....!!

मनोज कुमार said...

बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।

आज बचपन के अधूरे,
ख़्वाब-सा बिखरा हुआ हूँ

छोटी बहर की बेहतरीन ग़ज़ल। मुझे यह प्रयोग बहुत अच्छा लगा - बचपन के अधूरे, ख़्वाब-सा बिखरा हुआ हूँ

Amrita Tanmay said...

वक्‍त की तस्‍वीर लाजवाब उकेरी है ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

देख लो तस्वीर मेरी,
वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।

बहुत खूब .....खूबसूरत गजल

अशोक सलूजा said...

बड़े साधारण और सधे शब्दों में मुझ जैसों की जुबां
में ,मुझ जैसो की कहानी बयाँ कर दी आपने....
आभार !

दिगम्बर नासवा said...

घुल रहा हूँ मैं किसी की
आँख का कजरा हुआ हूँ।...

छोटी बहर में गहरी और दूर की बात ... लाजवाब है पूरी गज़ल ...बधाई ...

Maheshwari kaneri said...

उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

देख लो तस्वीर मेरी,
वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ....सशक्त अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर..

Unknown said...

अच्छी प्रस्तुति,

Shikha Kaushik said...

BAHUT SUNDAR BHAVABHIVYAKTI .AABHAR


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Ramakant Singh said...

देख लो तस्वीर मेरी,
वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।

बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।

बहुत खूबसूरत गज़ल

dinesh gautam said...

बेहतरीन सर! क्या बात है।

Bharat Bhushan said...

वाह महेंद्र जी, एक दम तराशी हुई ग़ज़ल. वाह!!

दीपिका रानी said...

बहुत सुंदर ग़ज़ल.. सारे शेर एक से बढ़कर एक
देख लो तस्वीर मेरी, वक्त ज्यों ठहरा हुआ हूं।

Naveen Mani Tripathi said...

घुल रहा हूँ मैं किसी की
आँख का कजरा हुआ हूँ।

रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।

yakeenan ...lajbab prastuti ...badhai sweekaren verma ji.

Kailash Sharma said...

उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

....बेहतरीन गज़ल...सभी शेर बहुत उम्दा...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

"मौन का सहरा".. वर्मा साहब, आपकी रचनाएं बस स्तब्ध करती हैं, चमत्कार की तरह!! इतनी साफ़ सोंच और इतनी सुन्दर बयानी!! मुग्ध हूँ!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

"मौन का सहरा".. वर्मा साहब, आपकी रचनाएं बस स्तब्ध करती हैं, चमत्कार की तरह!! इतनी साफ़ सोंच और इतनी सुन्दर बयानी!! मुग्ध हूँ!!

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

संध्या शर्मा said...

रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।
गहरे भाव... सुन्दर रचना...आभार

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।

Bahut Sunder...

लोकेन्द्र सिंह said...

हरेक शेर जबरदस्त.... आनंद आ गया वर्मा जी...

udaya veer singh said...

लाजवाब नज्म खूबसूरती के साथ ..... बधाईयाँ जी /

dinesh aggarwal said...

एक पंक्ति दूसरी से खूबसूरत....

सुशील कुमार जोशी said...

उम्दा !!

Suman said...

बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।
वाह बहुत सुंदर ...

shashi purwar said...

आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।

उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।..waah bahut khoobsurat gajal . hardik badhai . aapko

Kunal Verma said...

Behad khubsurat....yahan bi padharein http://kunal-verma.blogspot.com

अनामिका की सदायें ...... said...

ek ek sher shamsheer si dhar liye hue hai. umda gazal.

रचना दीक्षित said...

आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।
बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।
रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।

लाजवाब नज्म.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।
सुन्दर अभिव्यक्ति.....बधाई.....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।
उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।

महेंद्र जी, आपकी रचनायें सीधे मन में उतर जाती हैं, बधाई.....

आग में जो जलके निखरे
हाँ वही तो स्वर्ण है
दान दे जीवन कवच जो
हाँ वही तो कर्ण है

Rajput said...

देख लो तस्वीर मेरी,
वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।

बहुत खूबसूरत गज़ल .

मदन शर्मा said...

सुन्दर प्रस्तुति . क्या कंहू ये समझ नहीं पा रहा हूं....कोई शब्द नहीं हैं बस इतना ही वाह क्या बात है..
हार्दिक शुभकामना है कि आप ऐसे ही लिखते रहें

Sonroopa Vishal said...

सभी शेर लाजबाव हैं .......उम्दा !