धूप-हवा-जल-धरती-अंबर



किसे कहोगे बुरा-भला है,
हर दिल में तो वही ख़ुदा है।

खोजो उस दाने को तुम भी,
जिस पर तेरा नाम लिखा है।

शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है।

ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
आँसू सबका एक बहा है।

उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ भला-भला लगता है।

गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।

धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
सबके जी में यही बसा है।
                                                     


                                               -महेन्द्र वर्मा

36 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

एक ही परमात्मा सबके ह्रदय में बसता है.. आपकी रचना हमेशा ही मन को शान्ति प्रदान करते हैं और आत्मा को शीतलता!!

रविकर said...

बहुत बढ़िया ।

पञ्च तत्व की देह ।

virendra sharma said...

पञ्च तत्व का बना खिलौना, पञ्च तत्व में ख़ाक हुआ है .बढ़िया भाव और अर्थ ,रिदम लिए है ग़ज़ल .

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह! क्या खूब कहा है!!

विभूति" said...

कोमल भावो की अभिवयक्ति..

Shikha Kaushik said...

उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ भला-भला लगता है।

ये शायद ऐसे ज्यादा सटीक लगेगा -

सब कुछ भला भला लगता है
जबसे उसकी मिली दुआ है .

सादर

दिगम्बर नासवा said...

शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है ...

बहुत खूब ... बहुत पसंद आया ये शेर ... पूरी गज़ल लाजवाब है ..

रश्मि प्रभा... said...

गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।... आओ एक पौधा हम लगायें

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
आँसू सबका एक बहा है।

उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ लगता भला-भला है।

गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।

सुंदर दर्शन नन्हीं पंक्तियों में आध्यात्म और सृष्टि को एक साथ समेट दिया है.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।

धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
सबके जी में यही बसा है।
सुंदर प्रस्तुति,

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

ashish said...

जहाँ चाह वहाँ राह .हम भी आशावान है

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

अपाने नाम वाला दाना ही तो नहीं खोजना चाहते हैं लोग ...दूसरे का छिनाना चाहते हैं।
प्रेरणादायक कविता।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

अपाने नाम वाला दाना ही तो नहीं खोजना चाहते हैं लोग ...दूसरे का छिनाना चाहते हैं।
प्रेरणादायक कविता।

Bharat Bhushan said...

शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है।

उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ भला-भला लगता है।

अत्यंत संवेदन भरी प्रामाणिक अनुभूतियाँ. बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है महेंद्र जी. छोटी बहर संप्रेषणीयता को गति देती है.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है।

Bahut Badhiya

मनोज कुमार said...

धूप-हवा-जल-धरती-अंबर
बेहतरीन ग़ज़ल वर्मा जी। सबमें उसी का नूर समाया, कौन है अपना कौन पराया। आंतरिक शांति मिलती है इस तरह की रचना पढ़ कर।

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...
सुंदर सामायिक रचना..

बधाई..

अनु

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

ऋता शेखर 'मधु' said...

शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है।

गीत प्रकृति का कभी न गाया,
इतने दिन तक व्यर्थ जिया है।

बहुत अच्छी प्रस्तुति...
एक पौधा लगाएँ ... जीवन को सफल बनाएँ!

Ramakant Singh said...

ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
आँसू सबका एक बहा है।

उसने दी है मुझे दुआएँ,
सब कुछ भला-भला लगता है।
ALL MIGHTY GOD IS GREAT AND ITS CREATION IS SUPERB AS YOU SCRIPTED.

udaya veer singh said...

बहुत सुन्दर .....बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति!
शुभकामनाएँ!

Dr.J.P.Tiwari said...

धूप-हवा-जल-धरती-अंबर,
सबके जी में यही बसा है।
पञ्च तत्व का बढ़िया भाव और अर्थ,लाजवाब गज़ल.

Monika Jain said...

bahut sundar

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खोजो उस दाने को तुम भी,
जिस पर तेरा नाम लिखा है।

बहुत सुंदर रचना ...

Naveen Mani Tripathi said...

शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है

bahut hi sundar panktiyan ...badhai verma ji.

Pallavi saxena said...

प्रेरणात्म्क रचना ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

Kailash Sharma said...

बहुत ख़ूबसूरत और प्रेरक प्रस्तुति...

M VERMA said...

खोजो उस दाने को तुम भी,
जिस पर तेरा नाम लिखा है।

बहुत बढ़िया ..

रचना दीक्षित said...

किसे कहोगे बुरा-भला है,
हर दिल में तो वही ख़ुदा है।

खोजो उस दाने को तुम भी,
जिस पर तेरा नाम लिखा है।

मन को शांति प्रदान करती सुंदर रचना.

Vandana Ramasingh said...

खोजो उस दाने को तुम भी,
जिस पर तेरा नाम लिखा है।


बहुत सुन्दर ...सच है ....प्रयास बिना सफलता नहीं मिलती

ZEAL said...

Awesome !

Sonroopa Vishal said...

शायद रोया बहुत देर तक,
उसका चेहरा निखर गया है।

ख़ून भले ही अलग-अलग हो,
आँसू सबका एक बहा है.....................वाह !

Smart Indian said...

सुन्दर विचार. जिन्होंने जाना, आनंद पाया.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

शायद रोया बहुत देर तक
उसका चेहरा निखर गया है...

खुबसूरत रचना सर...
सादर.