हर तरफ


वायदों की बड़ी बोलियाँ हर तरफ,
भीड़ में बज रही तालियाँ हर तरफ।

गौरैयों की चीं-चीं कहीं खो गई,
घोसलों में जहर थैलियाँ हर तरफ।

वो गया था अमन बाँटने शहर में,
पर मिलीं ढेर-सी गालियाँ हर तरफ।

भूख से मर रहे हैं मगर फिंक रहीं
व्यंजनों से भरी थालियाँ हर तरफ।

मन का पंछी उड़े 
भी तो कैसे उड़े,
बाँधता है कोई जालियाँ हर तरफ।

एक ही पेड़ से सब उगी हैं मगर,
द्वेष की फैलती डालियाँ हर तरफ।

विचारों की आँधी करो कुछ जतन,
गिरे क्रांति की बिजलियाँ हर तरफ।

                                                                -महेन्द्र वर्मा

35 comments:

M VERMA said...

गौरैयों की चीं-चीं कहीं खो गई,
घोसलों में जहर थैलियाँ हर तरफ।
बहुत सुन्दर गज़ल

दिगम्बर नासवा said...

वो गया था अमन बाँटने शहर में,
पर मिलीं ढेर-सी गालियाँ हर तरफ..

सच्छे लोगों का यही होता है हाल ...
गालियाँ सुन के हो जाते हैं बेहाल ...

कमाल की गज़ल है ... हर शेर कुछ न कुछ कहता हुवा ...

vandana gupta said...

्शानदार गज़ल ………हर शेर सच्चाई दर्शाता

अशोक सलूजा said...

इन्क़लाबी रचना पर मुबारक कबूल करें ....
शुभकामनाएँ!

लोकेन्द्र सिंह said...

वो गया था अमन बाँटने शहर में,
पर मिलीं ढेर-सी गालियाँ हर तरफ।
- शाश्वत सत्य,,,, वर्तमान हालात पर नजर दौडाएं तो यही देखने को मिलेगे... जो लोग समाज के भले के लिए भूखे प्यासे लड़ रहे हैं उन्हें ही लानत मिल रही है....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एक ही पेड़ से सब उगी हैं मगर,
द्वेष की फैलती डालियाँ हर तरफ।

आज के हालातों को कहती बहुत सुंदर गजल

Amrita Tanmay said...

आह ! अति सुन्दर सत्य....

मेरा मन पंछी सा said...

सुंदर|||बेहतरीन रचना.....

अनुपमा पाठक said...

विचारों की आँधी करो कुछ जतन,
गिरे क्रांति की बिजलियाँ हर तरफ।
ऐसा ही हो!
सादर!

ashish said...

विचारों की आँधी करो कुछ जतन,
गिरे क्रांति की बिजलियाँ हर तरफ।
बस इसी की सख्त जरुरत है . विचारशील रचना .

Ramakant Singh said...

मन का पंछी उड़े भी तो कैसे उड़े,
बाँधता है कोई जालियाँ हर तरफ।

खुबसूरत लेकिन कड़वा सत्य .

Rakesh Kumar said...

अनमोल है आपकी यह प्रस्तुति.

पढकर मन भाव विभोर हो उठा है.


समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा,महेंद्र जी.

ZEAL said...

वो गया था अमन बाँटने शहर में,
पर मिलीं ढेर-सी गालियाँ हर तरफ।

यही होता आया है आज तक , लेकिन गालियाँ भी रोक नहीं सकती हैं अमन बांटने वालों को ...

.

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...............
मन का पंछी उड़े भी तो कैसे उड़े,
बाँधता है कोई जालियाँ हर तरफ।

बहुत खूबसूरत गज़ल......

सादर.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

गौरैयों की चीं-चीं कहीं खो गई,
घोसलों में जहर थैलियाँ हर तरफ।

Bahut Hi Sunder

Vandana Ramasingh said...

भूख से मर रहे हैं मगर फिंक रहीं
व्यंजनों से भरी थालियाँ हर तरफ।

दुखद स्थिति है..... यहीं कहीं है भ्रष्टाचार की जड़ें

केवल राम said...

भूख से मर रहे हैं मगर फिंक रहीं
व्यंजनों से भरी थालियाँ हर तरफ।

वर्तमान सन्दर्भों को आपने बखूबी अभिव्यक्त किया है ....हर शे'र अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है ..!

ऋता शेखर 'मधु' said...

शानदार...सभी अशआर सामयिक और सार्थक!!!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

वायदों की बड़ी बोलियाँ हर तरफ,
भीड़ में बज रही तालियाँ हर तरफ।

उम्दा गज़ल. सामयिक परिदृश्य का यथार्थ.

रश्मि प्रभा... said...

गौरैयों की चीं-चीं कहीं खो गई,
घोसलों में जहर थैलियाँ हर तरफ।... सबकुछ खो गया है

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

विचारों की आँधी करो कुछ जतन,
गिरे क्रांति की बिजलियाँ हर तरफ।

वाह...बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति,....

RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

virendra sharma said...

भूख से मर रहे हैं मगर फिंक रहीं
व्यंजनों से भरी थालियाँ हर तरफ।
बदलाव की छट पटाह्त लिए है ये रचना अगर ऐसा ही सब कुछ होता है तो होता क्यों है .बहुत काबिले गौर है ये शेर -
एक ही पेड़ से सब उगी हैं मगर,
द्वेष की फैलती डालियाँ हर तरफ।
बढ़िया प्रस्तुति हर माने में अव्वल .


सोमवार, 7 मई 2012
भारत में ऐसा क्यों होता है ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तथा यहाँ भीं सर जी -
चोली जो लगातार बतलायेगी आपके दिल की सेहत का हाल

http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
गोली को मार गोली पियो अनार का रोजाना जूस
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_07.html

विभूति" said...

बेहतरीन ग़ज़ल...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मन का पंछी उड़े भी तो कैसे उड़े,
बाँधता है कोई जालियाँ हर तरफ।
आपकी गज़लें अवाक कर देती हैं.. कमेन्ट लिखना भी छोटा लगने लगता है.. हमेशा प्रेरक!! यह शेर मुझे ख़ास तौर पर पसंद आया!! आभार आपका!!

Satish Saxena said...

बड़ी मधुर रचना है ....आभार

Naveen Mani Tripathi said...

वो गया था अमन बाँटने शहर में,
पर मिलीं ढेर-सी गालियाँ हर तरफ।

भूख से मर रहे हैं मगर फिंक रहीं
व्यंजनों से भरी थालियाँ हर तरफ।
verma ji vakai bhaut hi shandar gazal likhi hai ap ne badhai sweekaren .

Kailash Sharma said...

मन का पंछी उड़े भी तो कैसे उड़े,
बाँधता है कोई जालियाँ हर तरफ।

....लाज़वाब...हरेक शेर दिल को छू जाता है...बहुत सुन्दर..

Pallavi saxena said...

यथार्थ को दर्शाती सार्थक रचना....समय मिले आपको तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

Maheshwari kaneri said...

गौरैयों की चीं-चीं कहीं खो गई,
घोसलों में जहर थैलियाँ हर तरफ।....सभी शेर
बहुत सुन्दर हैं.......

मनोज कुमार said...

गौरैयों की चीं-चीं कहीं खो गई,
घोसलों में जहर थैलियाँ हर तरफ।
कमाल के भाव हैं।

Smart Indian said...

बहुत बढिया!

Bharat Bhushan said...

वो गया था अमन बाँटने शहर में,
पर मिलीं ढेर-सी गालियाँ हर तरफ।

बहुत सादा और बढ़िया ग़ज़ल है.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी
नमस्कार !
सुंदर रचना के लिए आभार !
एक ही पेड़ से सब उगी हैं मगर,
द्वेष की फैलती डालियाँ हर तरफ

बहुत ख़ूब ! लाजवाब !

हार्दिक मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

विचारों की आँधी करो कुछ जतन,
गिरे क्रांति की बिजलियाँ हर तरफ।

बहुत उम्दा ग़ज़ल...
सादर.

Baldau Ram sahu said...

एक ही पेड़ से सब उगी हैं मगर,
द्वेष की फैलती डालियाँ हर तरफ

प्रासंगिक है।