‘मेरे कहने का ये आशय नहीं था, आप गलत समझ रहे हैं।‘
यह एक ऐसा वाक्य है जिसका प्रयोग बातचीत के दौरान हर किसी को करने की जरूरत पड़ ही जाती है।
क्यों जरूरी हो जाता है ऐसा कहना ?
उत्तर स्पष्ट है-बोलने वाले ने अपना विचार व्यक्त करने के लिए शब्दों का प्रयोग जिन अर्थों में किया, सुनने वाले ने उन शब्दों को भिन्न अर्थों में सुना और समझा।
किसी शब्द का अर्थ बोलने और सुनने वाले के लिए भिन्न-भिन्न क्यों हो जाता है ?
दरअसल, शब्दों के अर्थ 3 बिंदुओं पर निर्भर होते हैं-
1. संदर्भ
2. मनःस्थिति
3. अर्थबोध क्षमता
बोलने वाला अपनी बात एक विशिष्ट संदर्भ में कहता है। आवश्यक नहीं कि सुनने वाला ठीक उसी संदर्भ में अर्थ ग्रहण करे। वह एक अलग संदर्भ की रचना कर लेता है।
मनःस्थिति और मनोभाव शब्दों के लिए एक विशिष्ट अर्थ का निर्माण करते हैं। बोलने और सुनने वाले की मनःस्थिति और मनोभावों में अंतर होना स्वाभाविक है।
शब्दों के अर्थबोध की क्षमता अध्ययन, अनुभव और बुद्धि पर निर्भर होती है। जाहिर है, ये तीनों विशेषताएं बोलने और सुनने वाले में अलग-अलग होंगी।
तो, क्या शब्दों के निश्चित अर्थ नहीं होते ?
गणित के प्रतीकों के अर्थ निश्चित होते हैं। ऐसे निश्चित अर्थ भाषाई शब्दों के नहीं हो सकते।
अर्थ परिवर्तन की यह स्थिति केवल वाचिक संवाद में ही नहीं बल्कि लिखित और पठित शब्दों के साथ भी उत्पन्न होती है।
जीवन में सुख और दुख देने वाले अनेक कारणों में से एक ‘शब्द‘ भी है।
शब्दों के इस छली स्वभाव को आपने भी महसूस किया होगा !
-महेन्द्र वर्मा
44 comments:
शब्दों के जाल में हर कोई फंसा रहता है और भाव तो कुछ कह ही नहीं पता है बस अनुभव कराता है. सहमति..
शब्द शक्ति है,शब्द-भाव है.शब्द सदा अनमोल,
शब्द बनाये शब्द बिगाडे .तोल मोल के बोल,,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,,
जीवन में सुख और दुख देने वाले अनेक कारणों में से एक ‘शब्द‘ भी है।
बेहद उम्दा आकलन
बढिया, विचारणीय लेख
शब्दों का बडा ही सुंदर विश्लेषण किया आपने । मेरे विचार से कभी कभी शब्दों का प्रयोग और उसके निहितार्थ इस बात पर भी निर्भर कर जाता है कि उसे बोलने वाला व्यक्ति कौन है । एक अलग दृष्टिकोण .....
जरूरी है दिल्ली में पटाखों का प्रदूषण
बिलकुल सही बात.. अभी दो दिन पहले एक कविता पर टिप्पणी करते हुए मैं यही कह रहा था.. एक नवयुवक ने वह कविता लिखी थी और मैंने जो अर्थ समझा उसपर उसने अपनी बात बतायी.. तब मैंने यही बात कही उससे..
वैसे राजनीति में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कहें कुछ और उसका मतलब निकले कुछ और पकडे जाने पर उसका अर्थ बताएं अलग ही कुछ!!
बहुत सच्ची और खरे शब्द!!
शब्द अलग से दीखते, रहते अगर स्वतंत्र ।
यही होंय लयबद्ध जब, बन जाते हैं मन्त्र ।
बन जाते हैं मन्त्र , काल सन्दर्भ मनस्थिति ।
विश्लेषक की बुद्धि, अगर विपरीत परिस्थिति ।
होवे अर्थ अनर्थ, शान्ति मिट जाए जग से ।
कोलाहल ही होय, सुने नहिं शब्द अलग से ।।
शत्रु-शस्त्र से सौ गुना, संहारक परिमाण ।
शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण ।
मित्र हरे झट प्राण, शब्द जब स्नेहसिक्त हों ।
जी उठता इंसान, भाव से रहा रिक्त हो ।
आदरणीय आभार, चित्र यह बढ़िया खींचा ।
शब्दों का जल-कोष, मरुस्थल को भी सींचा ।।
शब्दों में ही रचा बसा है संसार ..... मनन करने योग्य पोस्ट
सहमत हूँ आपके विचार से... बोलने और सुनने वाले की मनःस्थिति और मनोभावों पर निर्भर करता है हर शब्द का अर्थ ...
शब्दों से जख्म लगाया जाता है ...
फिर शब्दों से ही मरहम लगाया जाता है !
बड़ी ताकत है शब्दों में ???
सहमत...शब्द एक अर्थ अनेक, कभी कभी सफाई भी देनी पड़ जाती है|
शब्दों के निश्चित अर्थ नहीं होते
गणित के प्रतीकों के अर्थ निश्चित होते हैं
AAPANE SATY KAHA
उम्दा पोस्ट भाई महेंद्र जी आभार |
सही और सूक्ष्म विश्लेषण किया है आपने .साधुवाद आपको।
बिलकुल ठीक पूरी तरह सहमत हूँ आपकी बात से शब्दों से ही तो ज़िंदगी चलती है और मेरे साथ तो अधिकतर ऐसा ही होता है लिखती अर्थ हूँ लोग पढ़ते अनर्थ है। :)बहुत बढ़िया पोस्ट समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
शब्द के प्रयोग के बारे में हमारी तरफ़ एक कहावत है - “यही मुंह है जो पान खिलाता है, यही मार भी खिलाता है।”
वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 05-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1054 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
बातहिं बात बनाइये, बात बने बनिजात।
देखा बातहिं बात मह, भिश्ती नृपति कहात।।
भिश्ती नृपति कहात, होत दिल्ली कर राजा।
सिक्का चाम चलाइ, बजावत आपन बाजा।
ग़ाफ़िल कहै बिचारि, बैठिहौं पीपल पातहिं।
बात बिगरि जौ जाय, तिहारो बातहिं बातहिं।।
वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 05-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1054 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
बढ़िया विश्लेषण...
बातों बातों में शब्दों के इस्तेमाल से बात बन भी जाती है बिगडती भी है । शब्द फूल भी होते हैं पत्थर भी बस आपके दिये गये तीन बिंदुऔं का ध्यान रकना होगा ।
सटीक विश्लेषण ...
बहुत बेहतरीन
शब्दों की माया बड़ी विचित्र है -इनकी भाव-भंगिमा का भी कोई पार नहीं .
करार-तकरार शब्दों ही देन है. कहते हैं कि व्यक्ति जो कहता है वह सुनने वाले तक 7 प्रतिशत ही पहुँचता है. बहुत बढ़िया विश्लेषण दिया है आपने.
'शब्दों का छली स्वभाव' मन-छलिया के खेल निराले.
शब्दों के अर्थ 3 बिंदुओं पर निर्भर होते हैं-
1. संदर्भ
2. मनःस्थिति
3. अर्थबोध क्षमता ... जिसे सामनेवाला अपने नज़रिए से बदल देता है ...
भावना और जमी हुई परतें भी सुननेवाले पर असर डालती हैं . अगर हम किसी को गलत ठहराने पर लगे होते हैं तो सारे शब्द अनर्थ में परिवर्तित कर देते हैं
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बहुत बढ़िया विचारनीय प्रस्तुति .आभार
वाणी ही निहित हैं, सभी तरह के शब्द।
कुच देते हैं सुख यहाँ, कुछ कर देते दग्ध।।
इस विषय पर और विमर्श की आवश्यकता है। सारे विवाद की जड़ यह भ्रम ही है, कि मैंने क्या कहा और उसने क्या समझा?
जी हाँ यदि इसे सही परिपेक्ष्य में न देखा जाय तो शब्द अर्थ के अनर्थ भी करा देता है .....सुन्दर विश्लेषण है आपका ....
बहुत बढ़िया एक अलग दृष्टिकोण ... विचारनीय प्रस्तुति .
हटकर पोस्ट, इस विषय पर एक पोस्ट लिखने की मैंने भी सोच रखी है। ’कम्युनिकेशन गैप’ कई बार बहुत अप्रिय स्थिति में ला खड़ा करता है।
bahut baar anubhav kiya hai, shabdon ke anekaarthon ko.
सुंदर विश्लेषण किया आपने ....एक अलग दृष्टिकोण
शब्द खरचिये सोच कर,शब्द बड़े अनमोल
भाव प्रकट हो जायँ बस,नपातुला ही बोल ||
सौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
मिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली .
सौहाद्र का है पर्व दिवाली ,
मिलजुल के मनाये दिवाली ,
कोई घर रहे न रौशनी से खाली .
हैपी दिवाली हैपी दिवाली .
विचारणीय आलेख है…
आभार …
बनी रहे त्यौंहारों की ख़ुशियां हमेशा हमेशा…
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♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
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सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान
**♥**♥**♥**●राजेन्द्र स्वर्णकार●**♥**♥**♥**
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sundar lekh vakat shabdon ka arth badal rha hai .....abhar
वास्तव में शब्द की छलना ने आज संबंधों को बिखेरने में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई है ...अर्थबोध तो व्यक्ति अपनी मनः स्थिति के अनुसार ही करता है
विषयानुसार लिखेँ....
Ramesh
8756046511
दिक्कत यह है बाहर सिर्फ शब्द होते हैं उनके अर्थ हमारे अन्दर होतें हैं .तदानुभूति हो तो अर्थ ग्रहण हो .सन्दर्भ के साथ अर्थ बदलते हैं निश्चय ही .कई बार सन्दर्भ वाही रहता है अर्थ बदल जाते हैं .बढ़िया भाव वाचक पोस्ट .
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