नए वर्ष से अनुनय

ढूँढो कोई कहाँ पर रहती मानवता,
मानव से भयभीत सहमती मानवता।

रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय,
इसीलिए आहत सी लगती मानवता।

मानव ने मानव का लहू पिया देखो,
दूर खड़ी स्तब्ध लरजती मानवता।

है कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
पूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता।

मेरे दुख को अनदेखा न कर देना
नए वर्ष से अनुनय करती मानवता।

                                                           
-महेन्द्र वर्मा
नव-वर्ष शुभकर हो !

33 comments:

Shalini kaushik said...

बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को .-2013

Anonymous said...

"मेरे दुख को अनदेखा मत कर देना
नए वर्ष से अनुनय करती मानवता।"

तथास्तु-सादर

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
संजय भास्‍कर said...

नव वर्ष पर बधाइयाँ !!

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक अभिव्यक्ति...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

Sunil Kumar said...

सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें .....

ऋता शेखर 'मधु' said...

नव वर्ष की शुभकामनायें!

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

नववर्ष की ढेरों शुभकामना!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 01-01-2013 को मंगलवारीय चर्चामंच- 1111 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

नव वर्षकी ढेर सारी मंगलकामनायें।

Kunwar Kusumesh said...

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

मनोज कुमार said...

आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

मेरा मन पंछी सा said...

सार्थक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
आपको सहपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ....
:-)

Asha Lata Saxena said...

नव वर्ष शुभ और मंगलकारी हो
आशा

लोकेन्द्र सिंह said...

इस समय मानवता किसी कोने में छिपकर रो रही है

Kailash Sharma said...

है कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
पूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता।

...बहुत प्रभावी और सार्थक अभिव्यक्ति..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

Madan Mohan Saxena said...

बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.

कविता रावत said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

Unknown said...

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

मन के - मनके said...

मार्मिक सत्य,आएं कोशिश करें मानवता को
सही अर्थ देने की.

अशोक सलूजा said...

ऐसी सुंदर सोच की ही ..तो तलाश है मानवता को .
शुभकामनाये हम सब को !

Amrita Tanmay said...

आमीन..नव वर्ष की समस्त शुभकामनाएं ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मानवता की इसी पुकार, इसी आह्वान की आवश्यकता है.. नववर्ष आपकी आशाओं का सूरज लेकर आये महेंद्र सा!!

Asha Joglekar said...

मेरे दुख को अनदेखा न कर देना
नए वर्ष से अनुनय करती मानवता।

तथास्तु । मानवता जागृत हो इस नये वर्ष में और उत्तरोत्तर बढे ।

दिगम्बर नासवा said...

मानव ने मानव का लहू पिया देखो,
दूर खड़ी स्तब्ध लरजती मानवता ..

सच कहा है महेंद्र जी ... मानवता लज्जित है आज ...
आपको २०१३ शुभ हो ...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




ढूँढो कोई कहाँ पर रहती मानवता,
मानव से भयभीत सहमती मानवता।

रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय,
इसीलिए आहत सी लगती मानवता।

मानव ने मानव का लहू पिया देखो,
दूर खड़ी स्तब्ध लरजती मानवता।

है कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
पूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता।

मेरे दुख को अनदेखा न कर देना
नए वर्ष से अनुनय करती मानवता।

अत्युत्कृष्ट !
किस बंध को कम आंकूं ?
पूरी रचना प्रभावशाली है ...
आदरणीय महेन्द्र वर्मा जी !

आपकी लेखनी से तो सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन ही होता आया है ,
आगे भी इसी तरह सरस्वती मां का प्रसाद बांटते रहें …


नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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Ramakant Singh said...

रहते हैं इस बस्ती में पाषाण हृदय,
इसीलिए आहत सी लगती मानवता।

एक बेबाक कथन और सत्य को उद्घाटित करती उद्घोषक रचना .

Satish Saxena said...

इस वर्ष इससे बेहतरीन रचना नहीं पढ़ी ...
बधाई आपको !

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति. आप को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

Vandana Ramasingh said...

मेरे दुख को अनदेखा न कर देना
नए वर्ष से अनुनय करती मानवता।

बहुत बहुत शुभकामनायें आपको

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ...हार्दिक शुभकामनायें

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

नया साल बढ़िया से चले जी

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

बाऊ जी नमस्ते!
सार्थक चिंतन!
ऐसा ही हो!

--
थर्टीन रेज़ोल्युशंस

दिगम्बर नासवा said...

है कोई इस जग में मानव कहें जिसे,
पूछ-पूछ कर रही भटकती मानवता। ...

बहुत खूब महेंद्र जी ... लाजवाब शेर हैं सभी मानवता को खोजते ... अपना अर्थ ढूंढती मानवता ...