श्वासों का अनुप्रास










 







सच को कारावास अभी भी,
भ्रम पर सबकी आस अभी भी ।

पानी ही पानी दिखता  पर,
मृग आँखों में प्यास अभी भी ।

मन का मनका फेर कह रहा,
खड़ा कबीरा पास अभी भी ।                                               

बुद्धि विवेक ज्ञान को वे सब,
देते हैं  संत्रास  अभी  भी ।

जीवन लय  को  साध  रहे हैं,
श्वासों का अनुप्रास अभी भी ।

पाने का  आभास क्षणिक था,
खोने का अहसास अभी भी ।

पंख हौसलों के ना कटते,
उड़ने का उल्लास अभी भी ।


                                 -महेन्द्र वर्मा







12 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Anonymous said...

"पंख हौसलों के न कटते,
उड़ने का उल्लास अभी भी"

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना

Bharat Bhushan said...

आपकी कविता के घोड़े दुलकी चाल से दिल में प्रवेश कर जाते हैं.

बुद्धि विवेक ज्ञान को वे सब,
देते हैं संत्रास अभी भी ।

जीवन लय को साध रहे हैं,
श्वासों का अनुप्रास अभी भी ।


अनुप्रास श्वासों को साधता है यह गहन फलसफा है.

Pammi singh'tripti' said...

Bahut sunder

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

वाह ।।बहुत ही सुन्दर ..।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

वाह ।।बहुत ही सुन्दर ..।

जमशेद आज़मी said...

श्वासों के अनुप्रास बहुत ही अच्छी रचना बन पड़ी है। प्रस्तुत करने के लिए आपका आभार।

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... बहुत ही मधुर गजाली है .... लाजवाब ...

जीवन और जगत said...

बहुत सुन्‍दर। आपकी रचना की अंतिम पंक्तियों को पढ़कर अपनी एक ग़ज़ल की कुछ पंक्तियां याद आ गईं जिन्‍हें यहॉं उद्धृत करना चाहूँगा -
परों ने छोड़ दिया फड़फड़ाना पिंजरे में, मैं बेकरार हूँ अब भी उड़ान रखता हूँ।

Kailash Sharma said...

पाने का आभास क्षणिक था,
खोने का अहसास अभी भी ।
...वाह्ह्ह..बहुत सुन्दर

Asha Joglekar said...

पंख हौसलों के ना कटते,
उड़ने का उल्लास अभी भी ।
बहुत सुंदर, और श्वासों का अनुप्रास कमाल की कल्पना।