जो भी होगा अच्छा होगा
जो भी होगा अच्छा होगा,
फिर क्यूँ सोचें कल क्या होगा ।
भले राह में धूप तपेगी,
मंज़िल पर तो साया होगा ।
दिन को ठोकर खाने वाले,
तेरा सूरज काला होगा ।
पाँव सफ़र मंज़िल सब ही हैं,
क़दम-दर-क़दम चलना होगा ।
कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे घर आईना होगा ।
-महेन्द्र वर्मा
10 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " होरी को हीरो बनाने वाले रचनाकार मुंशी प्रेमचंद “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
‘‘ब्लाग बुलेटिन’’ के प्रति आभार ।
बहुत बढ़िया पंक्तियाँ
बहुत सुंदर कविता जो कदम-दर-कदम जीवन जीने के नुक़्ते बताती चलती है.
कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे घर आईना होगा ।
अंततः ख़ुद को अपने ही आईने में परखना और सँवरना होता है. बहुत ख़ूब महेंद्र जी.
दिन को ठोकर खाने वाले ...
वाह .. बहुत ही लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल में ... दिल में सीधे उतरते हैं ...
कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे घर आईना होगा ।
...वाह...बहुत सुन्दर...सभी अशआर लाज़वाब...
कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे घर आईना होगा ।
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शब्द ऐसे जी दिल में सीधे उतरते हैं
waah bahut khoob
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आमीन ।
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