जख़्म सीने में पलेगा उम्र भर,
गीत बन-बन कर झरेगा उम्र भर।
घर का हर कोना हुआ है अजनबी,
आदमी ख़ुद से डरेगा उम्र भर।
जो अंधेरे को लगा लेते गले,
नूर उनको क्या दिखेगा उम्रं भर।
दिल के किस कोने में जाने कब उगा,
ख़्वाब है मुझको छलेगा उम्र भर।
कर रहा कुछ और कहता और है,
वो मुखौटा ही रखेगा उम्र भर।
छल किया मैंने मगर नेकी समझ,
याद वो मुझको करेगा उम्र भर।
वक़्त की परवाह जिसने की नहीं,
हाथ वो मलता रहेगा उम्र भर।
-महेन्द्र वर्मा