आरम्भ

अपने इस ब्लाग पर मैं आरम्भ में हिंदी साहित्य के कुछ प्राचीन महाकवियों की रचनाओं को पोस्ट करूंगा। यदा कदा मैं अपनी रचनाओं को भी सम्मिलित करूंगा। आज प्रस्तुत है संत कवि कबीर की एक रचना-

तलफै बिन बालम मोर जिया।
दिन नहिं चैन रात नहिं निंदिया, तलफ तलफ के भोर किया।
तन-मन मोर रहट अस डोले, सून सेज पर जनम छिया।
नैन चकित भए पंथ न सूझै, सोइ बेदरदी सुध न लिया।
कहत कबीर सुनो भइ साधो, हरी पीर दुख जोर किया।