‘ग़र अकेले ऊब जाएं आप भी,
आईने से दिल लगाएं आप भी।
देखिए शम्आ की जानिब इक नज़र,
ज़िदगी को यूं लुटाएं आप भी।
हर अंधेरे में नहीं होता अंधेरा,
आंख से परदा हटाएं आप भी।
जान लोगे लोग जीते किस तरह हैं,
इक मुखौटा तो लगाएं आप भी।
भूल जाएं रंज अब ऐसा करें,
साथ मेरे गुनगुनाएं आप भी।
सब इसे कहते, ख़ुदा की राह है,
आशिक़ी को आज़माएं आप भी।
मैं कबीरा की लुकाठी ले चला हूं,
हो सके तो साथ आएं आप भी।
-महेन्द्र वर्मा