अब अंधेरे को डराना चाहिए
फिर कोई सूरज उगाना चाहिए।
शोर से ऊबी गली ने फिर कहा
झींगुरों को गुनगुनाना चाहिए।
जुगनुओं को देख तारे जल गए
अब हमें भी झिलमिलाना चाहिए।
प्यार के पल को समझने के लिए
सुन रहे हैं इक ज़माना चाहिए।
आदमी को कुछ नही तो कम से कम
जि़्दगी से सुर मिलाना चाहिए।
क्या पता कब दाग़ लग जाए कहीं
वक़्त से दामन बचाना चाहिए।
-महेन्द्र वर्मा