देश हमारा

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आलोकित हो दिग्दिगंत, वह दीप जलाएं,
देश हमारा झंकृत हो, वह साज बजाएं।


जन्म लिया हमने, भारत की पुण्य धरा पर,
सकल विश्व को इसका गौरव-गान सुनाएं।


कभी दूध की नदियां यहां बहा करती थीं,
आज ज्ञान-विज्ञान-कला की धार बहाएं।


अनावृत्त कर दे रहस्य जो दूर करे भ्रम,
ऐसे सद्ग्रंथों का रचनाकार कहाएं।


गौतम से गांधी तक सबने इसे संवारा,
आओ मिल कर और निखारें मान बढ़ाएं।


भाग्य कुपित है कहते, जो हैं बैठे ठाले,
कर्मशील कर उनको जीवन-गुर सिखलाएं।


कोटि-कोटि हाथों का श्रम निष्फल न होगा,
धरती को उर्वरा, देश को स्वर्ग बनाएं।

                                                                    -महेंद्र वर्मा

गीतिका : बरसात में



धरणि धारण कर रही, चुनरी हरी बरसात में,

साजती शृंगार सोलह, बावरी बरसात में।



रोक ली है राह काले, बादलों ने किरण की,

पीत मुख वह झाँकती, सहमी-डरी बरसात में,



याद जो आई किसी की, मन हुआ है तरबतर,

तन भिगो देती छलकती, गागरी बरसात में।



एक तो बूँदें हृदय में, सूचिका सी चुभ रहीं,

क्यों किसी ने छेड़ दी फिर, बाँसुरी बरसात में।



क्रोध से बौरा गए, होंगे नदी-नाले सभी,

सोचते ही आ रही है, झुरझुरी बरसात में।



ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,

किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में


                                     
                                                                   -महेंद्र वर्मा

मैं भी इक संतूर रहा हूं।


दिल ही हूं मजबूर रहा हूं,
इसीलिए मशहूर रहा हूं।


चलता आया उसी लीक पर,
दुनिया का दस्तूर रहा हूं।


नए दौर में सच्चाई का,
चेहरा हूं, बेनूर रहा हूं।


वो नज़दीक बहुत हैं मेरे,
जिनसे अब तक दूर रहा हूं।


चोट लगी तो फूल झरे हैं,
मैं भी इक संतूर रहा हूं।


कहते हैं सब कभी किसी की,
आंखों का मैं नूर रहा हूं।


अब मुझको आना न जाना,
मैं तो बस मग़्फ़ूर रहा हूं।

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संतूर-  एक वाद्ययंत्र
मग़्फ़ूर-जिसे मोक्ष प्राप्त हो गया हो



                                          -महेंद्र वर्मा