दोहे - सारे नाते नेह के



नाते इस संसार में, बनते एकाएक,
सारे नाते नेह के, नेह बिना नहिं नेक।


मन की गति कितनी अजब, कितनी है दुर्भेद,
तुरत बदलता रंग है, कोउ न जाने भेद।


मानव जीवन क्षणिक है, पल भर उसकी आयु,
लेकिन उसकी कामना, होती है दीर्घायु।


सुख के साथी बहुत हैं, होता यही प्रतीत,
दुख में रोए साथ जो, वही हमारा मीत।


क्रोधी करता है पुनः, अपने ऊपर क्रोध,
जब यथार्थ के ज्ञान का, हो जाता है बोध।


वह मनुष्य सबसे अधिक, है दरिद्र अरु दीन,
जो केवल धन ही रखे, विद्या सद्गुण हीन।


जो चाहें मिलता नहीं, मिलता अनानुकूल,
सोच सोच सब  ढो रहे, मन भर दुख सा शूल।

                                                                   -महेंद्र वर्मा