भक्ति संगीत



पूजा से स्तोत्र करोड़ गुना श्रेष्ठ है, स्तोत्र से जप करोड़ गुना श्रेष्ठ है, जप से करोड़ गुना श्रेष्ठ गान है। गान से बढ़कर उपासना का अन्य कोई साधन नहीं है।

पूजा कोटिगुणं स्तोत्रं, स्तोत्रात्कोटिगुणो जपः।
जपात्कोटिगुणं गानं, गानात्परतरं नाहिं।।

स्वमुक्ति और जनसामान्य में धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना भक्तिकाल के संतों का प्रमुख लक्ष्य था। मीरा, सूर, तुलसी, कबीर, रैदास, चैतन्य महाप्रभु, गुरु नानकदेव आदि संतों ने अपने विचारों को काव्य का रूप देकर संगीत के माध्यम से सजाया, संवारा एवं जनसामान्य के कल्याणार्थ उसका प्रचार-प्रसार किया। भक्ति मार्ग पर चलते समय संगीत इनके लिए ईश्वरोपासना का श्रेष्ठतम साधन था।

भक्ति का प्रचार करने वाले संतों ने रस एवं भाव को आधार बना कर शास्त्रीय संगीत की सहायता से उसके धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वरूप का संवर्धन किया। इनके द्वारा रचित भक्तिकाव्य- गीत, भजन, कीर्तन और पद- के प्रारंभ में विभिन्न रागों, यथा-सारंग, काफी, आसावरी, कल्याण, कान्हड़ा, मल्हार, बसंत आदि का उल्लेख मिलता है।

भक्तिगायन की प्रक्रिया शास्त्रीय रीति से सुनियोजित होती थी। नित्यक्रम में राग भैरव व गांधार आदि से प्रारंभ होकर बिलावल, तोड़ी, आसावरी आदि से गुजरते हुए पूर्वी, कल्याण आदि के सहारे सायंकाल तक पहुंचती थी। अंत में शयनकाल में विहाग राग की स्वरावलियों का प्रयोग होता था।


प्रस्तुत है, अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन के स्वर में  तुलसीदास जी कृत गणेश वंदना जो राग मारवा में निबद्ध है -

                                            

                                                                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

हमन है इश्क मस्ताना




क्या यह हिंदी की पहली ग़ज़ल है ?

कबीर साहब का प्रमुख ग्रंथ ‘बीजक‘ माना जाता है। इसमें तीन प्रकार की रचनाएं सम्मिलित हैं- साखी, सबद और रमैनी। यहां कबीर की एक ऐसी रचना प्रस्तुत है जो न तो बीजक में है और न ही श्याम सुंदर दास रचित ‘कबीर ग्रंथावली‘ में।


प्रतीत होता है कि विशुद्ध ग़ज़ल शैली में लिखी गई यह आध्यात्मिक रचना कबीर द्वारा कही गई न होकर किसी परवर्ती कबीरपंथी साधु द्वारा लिखी गई । रचना की अंतिम पंक्ति यानी मक़्ते में कबीर शब्द आने के कारण इसे कबीर कृत मान लिया गया। प्राचीन ग्रंथों में इस तरह की प्रक्षिप्त रचनाएं मिलती रही हैं। आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व वेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद से 4 भागों में  प्रकाशित ‘कबीर साहब की शब्दावली‘ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई थी। इसी पुस्तक में अन्य पदों के साथ ग़ज़ल शैली की यह एकमात्र रचना भी संकलित है।


यदि यह कबीर द्वारा कही गई है तो क्या इसे हिंदी की पहली ग़ज़ल कह सकते हैं ?

हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या,
रहें आजाद या जग में, हमन दुनिया से यारी क्या।

जो बिछड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में, हमन को इंतज़ारी क्या।

खलक सब नाम जपने को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरु नाम सांचा है, हमन दुनिया से यारी क्या।

न पल बिछड़ें पिया हमसे, न हम बिछड़ें पियारे से,
उन्ही से नेह लागी है, हमन को बेक़रारी क्या।

कबीरा इश्क़ का नाता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाजुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या।


दूरदर्शन धारावाहिक ‘कबीर‘ में कबीर की भूमिका निभाने वाले अन्नू कपूर ने इस ग़ज़ल 
को अपना स्वर दिया है, बिना वाद्य के। सुनना चाहें तो यहां सुन लीजिए।

                                                                                                 -महेन्द्र वर्मा

दोहे: तन-मन-धन-जन-अन्न


जहाँ-जहाँ पुरुषार्थ है, प्रतिभा से संपन्न, 
संपति पाँच विराजते, तन-मन-धन-जन-अन्न।


दुख है जनक विराग का, सुख से उपजे राग,
जो सुख-दुख से है परे, वह देता सब त्याग।


ऐसी विद्या ना भली, जो घमंड उपजात,
उससे तो मूरख भले, जाने शह ना मात।


ईश्वर मुझको दे भले, दुनिया भर के कष्ट,
पर मिथ्या अभिमान को , मत दे, कर दे नष्ट।


जो भी है इस जगत में, मिथ्या है निस्सार,
माँ की ममता सत्य है,  करें सभी स्वीकार।


                                                                              -महेन्द्र वर्मा