पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
सहमे-सहमे से सपने हैं,
आशा के अपरूप,
वक्र क्षितिज से सूरज झाँके,
धुँधली-धुँधली धूप।
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
मेरा भव्य अतीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
छला गया मीठी बातों से,
नाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
अब तक कानों में जो गूँजा,
कोई काँपता गीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
-महेन्द्र वर्मा