अंधकार को डरा रौशनी तलाश कर,
‘मावसों की रात में चांदनी तलाश कर।
बियाबान चीखती खामोशियों का ढेर है,
जल जहां-जहां मिले जि़ंदगी तलाश कर।
डगर-डगर घूमती सींगदार साजिशें,
जा अगर कहीं मिले आदमी तलाश कर।
जानते रहे जिसे साथ न दिया कोई,
दोस्ती के वास्ते अजनबी तलाश कर।
बाग है धुआं-धुआं खेत-खेत कालिखें
सुब्ह शबनमी फिजां में ताजगी तलाश कर।
वर्जना की बेडि़यां हत परों की ख्वाहिशें,
आंख में घुली हुई बेबसी तलाश कर।
हर तरफ उदास-से चेहरों की भीड़ है,
मन किवाड़ खोल दे हर खुशी तलाश कर।
-महेन्द्र वर्मा