आग से गुज़रा हुआ हूँ,
और भी निखरा हुआ हूँ।
उम्र भर के अनुभवों के,
बोझ से दुहरा हुआ हूँ।
देख लो तस्वीर मेरी,
वक़्त ज्यों ठहरा हुआ हूँ।
बेबसी बाहर न झाँके,
लाज का पहरा हुआ हूँ।
आज बचपन के अधूरे,
ख़्वाब-सा बिखरा हुआ हूँ
घुल रहा हूँ मैं किसी की
आँख का कजरा हुआ हूँ।
रेत सी यादें बिछी हैं,
मौन का सहरा हुआ हूँ।
-महेन्द्र वर्मा