रोज़-रोज़ यूं बुतख़ाने न जाया कर,
दिल में पहले बीज नेह के बोया कर।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
लोग देखकर मुंह फेरेंगे झिड़केंगे,
सरे आम ग़म का बोझा न ढोया कर।
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर।
-महेन्द्र वर्मा
दिल में पहले बीज नेह के बोया कर।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
लोग देखकर मुंह फेरेंगे झिड़केंगे,
सरे आम ग़म का बोझा न ढोया कर।
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर।
-महेन्द्र वर्मा
50 comments:
क्या बात है...बहुत ही अर्थपूर्ण ग़ज़ल...
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
वाह !!! क्या बात है, सुबह खुशगवार हो गई.हर अश'आर वजनदार,शानदार.
गंभीर आत्मचिंतन की सहज अभिव्यक्ति.
गज़ब के अशरार्……………सभी एक से बढकर एक्…………शानदार गज़ल्।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
बहुत उम्दा है। बधाई।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
sunder shayari ...
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।... गया वक़्त फिर लौटता नहीं
बेहतरीन लफ्जों से सजी ये गजल....बहुत सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति !
बहुत बढ़िया ग़ज़ल है महेंद्र जी. ये पंक्तियाँ तो जैसे दिल की गहराई को नाप लेती हैं-
नीचे भी तो झांक ज़रा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर।
वाह!!
उपरवाले को क्या खूब सुनाया है..अति सुन्दर..
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
Vah verma ji , ..... bahut hi sundar gazal hr sher men ak sandesh ....lajbab prastuti ...badhai
बहुत ख़ूब...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर।
क्या बात है महेन्द्र जी अच्छी डांट लगाई ईश्वर को वह भी इतने खूबसूरत शेरों से
बहुत बढ़िया ...
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
लाजवाब,,,
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर...
बहुत खूब ... आपका हर शेर कुछ नया सन्देश दे जाता है ... बहुत ही लाजवाब गज़ल है ..
नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर।
क्या बात है. बहुत खूब.
सभी अशार बहुत ही अच्छे है आदरणीय महेंद्र भईया...
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
वाह! वाह! शानदार ग़ज़ल के दिली दाद कुबूल फरमाएं...
सादर.
शानदार ग़ज़ल...
बहुत ही बेहतरीन........
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हर -एक पंक्तियाँ शानदार और लाजबाब हैं ..
aik se bad kar aik She'r /... bahut sundar arthpurn gazal.. NavVarsh par haardik shubhkaamnayen
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सचिन का सेंचुरी नहीं - सलिल का हाफ-सेंचुरी : ब्लॉग बुलेटिन
पूरी गज़ल शानदार ... सार्थक सन्देश देती हुई
बहुत खूब! हरेक शेर गहन अर्थ समाये...आभार
bahut khoob sir
aakhari 2 line ne to dil jit liya sir
एक एक शेर अनमोल मोती की तरह.. सहेजकर रखने के लिए नहीं, बांटने के लिए!! प्रणाम आपको!!
लोग देखकर मुंह फेरेंगे झिड़केंगे,
सरे आम ग़म का बोझा न ढोया कर।
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल .इतना बोझा बे -मतलब मत ढ़ोया कर .
Excellent creation!
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।.......
बहुत ही छूती हुई और सच्ची पंक्तियाँ.......
बहुत खूबसूरत ||
आपकी गज़लें, दोहे, कवितायें और संत कवियों के परिचय (और उनकी रचनाएं) सब सुभाषित हैं...! कई बार तो लगता है कि बच्चों को स्कूल में पढाई जानी चाहिए ये रचनाएं, जो अब लुप्त हो चुकी हैं!!
हमेशा की तरह एक लाजवाब करती गजल।
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मुई दिल्ली की सर्दी..
... बुशरा अलवेरा की जुबानी।
बहुत शानदार गजल
आशा
गहरे भावों के साथ सुंदर प्रस्तुति.....अच्छी सीख
एक मुकम्मल गज़ल है। हर शेर लाज़वाब। बहुत बधाई।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर।
बहुत खूबसूरत और अर्थपूर्ण गजल...
बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा ग़ज़ल! बधाई!
http://urvija.parikalpnaa.com/2012/01/blog-post_11.html
बहुत ही लाजवाब गज़ल है ..नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर...क्या बात है..
वक़्त लौट कर चला गया दरवाज़े से,
ऐसी बेख़बरी से अब ना सोया कर ...
दुबारा आने पे भी उतना ही मज़ा देती है ये गज़ल ...
बहुत खूबसूरत लिखते हैं आप महेंद्र जी.. वटवृक्ष से आपके ब्लॉग का लिंक मिला। अब पढ़ते रहेंगे..
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।बेहतरीन ग़ज़ल....बहुत खूब.....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
kya khoob likha hai ak gahra chintan aur gambheerata ko samete huye ....badhai Verma ji
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
kya khoob likha hai ak gahra chintan aur gambheerata ko samete huye ....badhai Verma ji
नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर थोड़ा पछताया कर।
बहुत बढ़िया गज़ल
शानदार!
कमाल की गज़ल है! आपकी लेखना को शत शत नमन।
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