संत मलूक दास



मध्यकाल के संत कवियों ने भक्तिपरक काव्य के साथ-साथ नीति विषयक पदों की भी रचना की है। आज प्रस्तुत है संत मलूक दास जी के कुछ नीतिपरक दोहे। इनका जन्म इलाहाबाद जिले के कड़ा नामक स्थान में विक्रम संवत 1631 को हुआ था और देहावसान विक्रम संवत 1739 में हुआ था ।


भेष फकीरी जे करै, मन नहिं आवै हाथ।
दिल फकीर जे हो रहे, साहेब तिनके साथ।।


दया धर्म हिरदे बसे, बोले अमृत बैन।
तेई उंचे जानिए, जिनके नीचे नैन।।


इस जीने का गर्व क्या, कहां देह की प्रीत।
बात कहत ढह जात है, बारू की सी भीत।।


आदर मान महत्व सत, बालापन को नेह।
यह चारों तब ही गए, जबहि कहा कछु देह।।


मलूक वाद न कीजिए, क्रोधे देव बहाय।
हार मानु अनजान तें,बक बक मरे बलाय।।


देही होय न आपनी, समझु परी है मोहि।
अबहीं तैं तजि राख तू, आखिर तजिहैं तोहि।।

2 comments:

ZEAL said...

Great verses !

vijai Rajbali Mathur said...

MAhenderji,
Malook dasji ko log Ajgar kare na chakri .... ke karan badnam kiye hue the aapne unki Adarsh Seekhon ko prastut kar Bhram-Nivaran kiya iske liye DHANYAWAD.