संत रविदास



संत रविदास या रैदास मध्ययुग के महान संतकवि थे। इनका जन्म काशी के निकट मंडूर नामक स्थान में विक्रम संवत 1456 को हुआ था। उन्होंने विधिवत कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की किंतु अपने अनुभव, भ्रमण और सत्संग से ही सब कुछ सीखा। संत रविदास ने अपने जीवन काल में ही सिद्धि प्राप्त कर धर्मोपदेशक के रूप में यश अर्जित कर लिया था। गुरुग्रंथ साहिब में उनके 40 पद उसी मौलिक स्वरूप में संग्रहित हैं। इनका देहावसान विक्रम संवत 1584 को हुआ। प्रस्तुत है इनका एक प्रसिद्ध पद -

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग अंग बास समानी।


प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, 
जैसे चितवत चंद चकोरा ।


प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,
जा की जोत बरै दिन राती।


प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहि मिलत सोहागा।


प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी   भक्ति    करै    रैदासा।

8 comments:

ZEAL said...

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महेंद्र जी,

बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने। आपका कार्य एवं उद्देश्य स्तुत्य है ।

आपका अभिनन्दन करती हूँ।
दिव्या

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mridula pradhan said...

padhkar man khush ho gaya.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

वर्मा जी.. गुरूग्रंथ साहिब में बहुत सारे संतों की वाणियाँ संकलित हैं..आज आपने संत रैदास की रचना से मिलवाकर बहुत नेक काम किया है. बहुत दिनों तक यह पद मेरी कॉलेज की कॉपियों पर लिखा रहता था, बाद में यह रेडियो पर गाया गया तो मेरे पास ये रिकॉर्डेड था टेप पर. पर बहुत दिनों से विस्मृत था..आभार आपका!

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरा सब से मनपसंद भजन्है। धन्यवाद।

Bharat Bhushan said...

आदरणीय वर्मा जी, आपके ब्लॉग की सादगी बहुत पसंद आई. रविदास जी के पद गुरुद्वारे में अकसर सुने हैं. आपका प्रयास बहुत अच्छा लगा. शुभकामनाएँ.

संजय भास्‍कर said...

महेंद्र जी,

बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने।

monali said...

Aapko padhna aananddayak anubhav hoga...shayad kafi kuchh seekhne ko milne wala h...

ज्योति सिंह said...

bahut hi sundar bhajan jise sunkar man nahi bharta .