भक्तकवि सूरदास

सबसे ऊंची प्रेम सगाई



मध्यकालीन भक्त कवियों में सूरदास शीर्षस्थ हैं। इनका जन्म संवत 1540 में हुआ था। विवाह के कुछ समय उपरांत ये विरक्त हो गए और भगवद्भक्ति की इच्छा से यमुना के तटवर्ती गांव गउघाट के निवासी हो गए। वृंदावन तीर्थयात्रा के समय सूरदास जी की भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई। वल्लभाचार्य ने सूरदास को दीक्षा दी और तब से वे कृष्ण लीला का गायन करने लगे। सूरदास से एक बार मथुरा में तुलसीदास की भेंट हुई। सूर से प्रभावित होकर तुलसीदास ने श्रीकृष्ण गीतावली की रचना की। 
अपने पदों के द्वारा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की माधुरी लीला को दृश्यमान बनाने में सूर की सफलता अनुपम है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा के शोध के अनुसार सूरदास रचित ग्रंथों की सुख्या 25 मानी जाती है, किंतु उनके तीन ही ग्रंथ उपलब्ध हो पाए हैं- सूरसागर, सूरसारावली और साहित्यलहरी। संतकवि शिरोमणि सूरदास जी के संबंध में यह दोहा प्रसिद्ध है-
सूर सूर तुलसी शशि, केशव उडुगनदास।
अबके कवि खद्योत सम, जंह तंह करत प्रकाश।
प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर ने सूरदास जी के जीवन-वृत्त पर आधारित ‘खंजन नयन‘ नामक एक बहुचर्चित उपन्यास लिखा है। सूरदास ने गोवर्धन के निकट परसौली ग्राम में संवत 1640 में अपना प्रणोत्सर्ग किया। प्रस्तुत है इनका एक प्रसिद्ध पद-
      
           सबसे ऊंची प्रेम सगाई।
        दुर्योधन को मेवा त्यागो,
        साग विदुर घर खाई।
        जूठे फल सबरी के खाए,
        बहु बिध प्रेम लगाई।
        प्रेम के बस अर्जुन रथ हांक्यो,
        भूल गए ठकुराई।
        ऐसी प्रीत बढ़ी बृंदाबन,
        गोपिन नाच नचाई।
        सूर क्रूर इस लायक नाहीं,
        कहं लग करै बड़ाई। 

8 comments:

ZEAL said...

Beautiful lines !

महेन्‍द्र वर्मा said...

thanks
please see this link also
http://kavita.hindyugm.com/2010/10/blog-post_08.html

जयकृष्ण राय तुषार said...

thanks bhai mahendra ji hume achcha laga

Sunil Kumar said...

सूरदास जी कि यह रचना पढवाने के लिए धन्यवाद

सम्वेदना के स्वर said...

महेंद्र जी,
एक महान कवि से परिचय करवाने और उनकी रचना से अवगत कराने का धन्यवाद!

seema gupta said...

सबसे ऊंची प्रेम सगाई।
दुर्योधन को मेवा त्यागो,
साग विदुर घर खाई।
सूरदास जी के दोहे और प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर जी के ‘खंजन नयन‘ उपन्यास से परिचय कराने का आभार.

regards

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर..सूरदास का यह पद मन की गहराई तक उतर जाता है...इसे अगर जगजीत सिंह की आवाज में सुनें तो आप एक अलोकिक अनुभव महसूस करेंगे...आभार..

Anonymous said...

very true