मीराबाई

मीरा के प्रभु गिरधर नागर


भक्त कवयित्रियों में मीराबाई का नाम अग्रगण्य है। इनका जन्म विक्रम संवत 1561 में मारवाड़ के मेड़ता गांव में हुआ था । इनके पिता का नाम रतनसिंह राठौर था। मीराबाई के शैशवकाल में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया था। मीराबाई का लालन-पालन कुड़की गांव में रहने वाली उनकी मौसी ने किया। ये अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं। सम्वत 1573 में इनका विवाह राणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ था। विवाह के 7-8 वर्ष पश्चात भोजराज की मृत्यु हो गई थी।
मीराबाई के निर्माण में उनकी जीवन परिस्थितियों ने मनोवैज्ञानिक योगदान किया। माता, भाई, बहन और पति के प्यार से वंचिता मीराबाई ने गिरधर गोपाल को ही अपना सर्वस्व मान लिया। एक जन श्रुति है कि एक बारात के दूल्हे को देखकर अबोध बच्ची मीरा माता से पूछ बैठी-‘मेरा वर कौन है ?‘ माता ने उसका कौतूहल शांत करने के लिए गिरधर की मूर्ति की ओर संकेत कर दिया। बस तभी से मीरा ने अपने मन-प्राणों में गिरधर को बसा लिया। भक्त मीराबाई का देहावसान अनुमानतः संवत 1630 के लगभग हुआ था। 
मीराबाई के लगभग 500 भक्तिपद प्राप्य हैं। मीराबाई की विशिष्टता इस बात में है कि उन्होंने कृष्ण भक्ति को ही अपना साधन और साध्य बनाया, किसी दार्शनिक या साम्प्रदायिक मतवाद का अनुसरण उन्होंने नहीं किया। प्रस्तुत है, मीराबाई के दो पद-

1
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा करि अपनायो।
जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सबै खोवायो।
खरचै न कोई चोर न लेवे, दिन दिन बढ़त सवायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तरि आयो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख हरख जस गायो।


2
आली रे मेरे नैनन बान पड़ी।
चित्त चढ़े मेरे माधुरि मूरत, उर बिच आन पड़ी।
कब की ठाड़ी पंथ निहारूं, अपने भवन खड़ी।
कैसे प्राण पिया बिन राखूं, जीवन मूर जड़ी ।
मीरा गिरधर हाथ बिकानी, लोग कहै बिगड़ी।

15 comments:

कडुवासच said...

...प्रभावशाली ब्लाग, बधाई !!!

ZEAL said...

Thanks for adding this beautiful info here.

monali said...

Meera n her Divine love... impossible to understand yet it fills u wid positivity... thnk u

Ra said...

aapka blog bahut pasand aaya !!

अथाह...

!!!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

मीराबाई के भजन के क्या कहने ... कृष्णप्रेम में डूबी साहित्य का भी परचम लहरा गई

PN Subramanian said...

सुन्दर प्रस्तुति. आभार.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

एक और मोती, भारत की साहित्य सम्पदा से!!साधुवाद!!!

ज्योति सिंह said...

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा करि अपनायो।
जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सबै खोवायो।
खरचै न कोई चोर न लेवे, दिन दिन बढ़त सवायो
yah to priya bhajan hai hamara ,sach kaha ye dhan anmol hai .

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति..... यह कृष्ण भजन जोड़ने के लिए तहेदिल से आपका आभार......

Patali-The-Village said...

सुन्दर प्रस्तुति, आभार|

वीना श्रीवास्तव said...

मीराबाई की तरह उनके भजन भी अमर हैं
http://veenakesur.blogspot.com/

दीपक 'मशाल' said...

Bahut khoob

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत बढिया ब्लाग बनाए हव भैया
पहिली बेर आना होईस।
मीरा के सुंदर भजन बर आपके आभार

संगीता पुरी said...

इस सुंदर से नए चिट्ठों के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!