लम्हा एक पुराना ढूंढ,
फिर खोया अफ़साना ढूंढ।
वे गलियां वे घर वे लोग,
गुज़रा हुआ ज़माना ढूंढ।
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
लोग बदल से गए यहां के,
कोई और ठिकाना ढूंढ।
कुदरत में है तरह तरह के,
सुंदर एक तराना ढूंढ।
दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा इक पैमाना ढूंढ।
प्रेम वहीं कोने पर बैठा,
दिल को ज़रा दुबारा ढूंढ।
जिस पर तेरा नाम लिखा हो,
ऐसा कोई दाना ढूंढ।
- महेन्द्र वर्मा
21 comments:
जिस पर तेरा नाम लिखा हो,
ऐसा कोई दाना ढूंढ।
अब क्या कहा जाय..... :) बेहतरीन रचना....
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
लोग बदल से गए यहां के,
कोई और ठिकाना ढूंढ।
वाह ..कितनी सटीक बात कही है ...बहुत अच्छी गज़ल ..
लोग बदल से गए यहां के,
कोई और ठिकाना ढूंढ।
बहुत सुन्दर गज़ल सच उजागर करती हुई।
प्रेम वहीं कोने पर बैठा,
दिल को ज़रा दुबारा ढूंढ।
बेहतरीन ग़ज़ल और ये शेर तो कमाल का बन पड़ा है ... बिलकुल हासिले ग़ज़ल शेर है ये ...
Very beautifully said
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
'dil ki gahrai jo nape
aisa ik paimana dhoondh'
achchha sher..
umda gazal.
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
सच्चाई को कितनी सटीकता से प्रस्तुत किया है..बहुत सुन्दर गज़ल..आभार
प्रेम वहीं कोने पर बैठा,
दिल को ज़रा दुबारा ढूंढ।
जिस पर तेरा नाम लिखा हो,
ऐसा कोई दाना ढूंढ।
in chhote sbdon men bahoot badi badi bat aap kah gaye.....
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
वाह महेंद्र जी वाह...छोटी बहर में क्या खूबसूरत शेर कहें हैं...बेहतरीन...दाद कबूल करें
नीरज
बहुत सही सन्देश दिया है इस गजल में ,लोगों को समझना तथा दूसरों को समझाना चाहिए तभी तारीफ़ करने की सार्थकता होगी.
लम्हा एक पुराना ढूंढ,
फिर खोया अफ़साना ढूंढ।
वे गलियां वे घर वे लोग,
गुज़रा हुआ ज़माना ढूंढ।
क्या बात है भाई,खूब लिख रहे हैं आप. बधाई
भला मि्लेगा क्या गुलाब से बरगद एक सयाना ढूंढ।
आपकी ग़ज़ल में अब ख़यालात की पुख़्तगी मुनाज़िर होने लगी है।
बहुत बहुत बधाई।
महेंद्र जी! आपकी काव्य क्षमता का तो मैं कायल हूँ और आपकी ग़ज़लों में एक विशेष आनंद आता है. यह गज़ल भी नए प्रतीकों के माध्यम से आपनी बात सटीक व्यक्त करती है.. हाँ बीच में ग़ज़ल कि बहर बदल गई है, और इस शेर में तराना की जगह दो चार तराने होना चाहिये था...
कुदरत में है तरह तरह के,
जा दो-चार तराना ढूंढ।
क़ाफिया की मजबूरी में ऐसा हुआ है, मैं समझ सकता हूँ, किंतु शिल्प की दृष्टि से भूल है..
छोटा मुँह बड़ी बात के लिए क्षमा!
ढूँढने से ही मोती मिलता है । लगन की महिमा बताती सुन्दर प्रस्तुति।
दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा इक पैमाना ढूंढ।
शानदार ग़ज़ल , मज़ा आ गया .
छोटी बहर की बहुत सुंदर ग़ज़ल आपने दी है. वाह!
दिल की गहराई जो नापे,
ऐसा इक पैमाना ढूंढ।
बहुत खूब ! वर्मा जी आज तो एक एक मोती में अलग ही आब है ! बहुत अच्छी स्वरबद्ध और सरल रचना के लिए शुभकामनायें !
भला मिलेगा क्या गुलाब से,
बरगद एक सयाना ढूंढ।
कितनी गहरी बात कह दी महेंद्र जी ....वाह ....
प्रेम वहीं कोने पर बैठा,
दिल को ज़रा दुबारा ढूंढ।
बहुत खूब .....
प्रेम को ढूँढने के लिए प्रेम का चिराग भी तो चाहिए ....
...bahut sundar ... behatreen !!!
महेन्द्र जी, जीवन के जीवंत रंगों से सजी हुई गजल के लिए बधाई स्वीकारें।
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