भूल चुके हैं हरदम साथ निभाने वाले,
याद किसे रखते हैं आज ज़माने वाले।
दूर कहीं जाकर बहलाएं मन को वरना,
चले यहां भी आएंगे बहकाने वाले।
उनका कहना है वो हैं हमदर्द हमारे,
चेहरे बदल रहे अब हमें मिटाने वाले।
रस्ते कहां, कहां मंज़िल है कौन बताए,
भटक गए हैं खु़द ही राह दिखाने वाले।
सुनते हैं रोने से दुख हल्का होता है,
कैसे जीते होंगे फिर न रोने वाले।
है कैसा दस्तूर निराला दुनिया का,
अंधियारे में बैठे शमा जलाने वाले।
रोते रोते ऊब चुके वे पूछा करते,
क्या तुमने देखे हैं कहीं हंसाने वाले।
-महेन्द्र वर्मा
35 comments:
जी हाँ अब रिवाज़ मिल कर मारने का ही चल रहा है. आपने सच ही तो कहा है -मिटाने वाले हमदर्द बन कर आते हैं.
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महेंद्र जी ,
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने।
कोई किसी का नहीं होता है। थोड़े समय कोई करीब तो रह सकता है , लेकिन इमानदारी से दोस्ती निभाने वाले विरले ही देखे हैं।
सुनते हैं रोने से दुख हल्का होता है,
कैसे जीते होंगे फिर न रोने वाले।
जो रोते नहीं हैं वही सच्चे इंसान हैं , जिन्होंने दुनिया का दस्तूर समझ लिया है । खुद पर निर्भर करते हैं ऐसे लोग ।
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रस्ते कहां, कहां मंज़िल है कौन बताए,
भटक गए हैं खु़द ही राह दिखाने वाले।
वाह, क्या खूब ! बहुत सुन्दर ! आज की यही सच्चाई है ! ग़ज़ल बहुत ही उम्दा है !
आपकी गज़लें खुद बोलती हैं……………हर शेर बेमिसाल होता है।
दूर कहीं जाकर बहलाएं मन को वरना,
चले यहां भी आएंगे बहकाने वाले।
वर्मा जी क्या बात कही है। बड़ी मुश्किल से इस शेर से आगे बढा। पूरी ग़ज़ल अच्छी है। पर यह शे’र तो बस ... लाजवाब है!
सुंदर ग़ज़ल महेंद्र भाई, बधाई|
रस्ते कहां, कहां मंज़िल है कौन बताए,
भटक गए हैं खु़द ही राह दिखाने वाले।
बहुत ही कड़वा सत्य..हरेक शेर लाज़वाब..बहुत सुन्दर गज़ल
behed umda gazal. zindgi ki sachchai se ru baru karati hui.
सुनते हैं रोने से दुख हल्का होता है,
कैसे जीते होंगे फिर न रोने वाले।
है कैसा दस्तूर निराला दुनिया का,
अंधियारे में बैठे शमा जलाने वाले।
अन्तर्मन को छूती हुई बहुत उत्तम गजल रचनाएँ...
रस्ते कहां, कहां मंज़िल है कौन बताए,
भटक गए हैं खु़द ही राह दिखाने वाले..
बहुत खूबसूरत गज़ल ...बिरोधाभास को कहती हुई ..
सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
भूल चुके हैं हरदम साथ निभाने वाले,
याद किसे रखते हैं आज ज़माने वाले।
दूर कहीं जाकर बहलाएं मन को वरना,
चले यहां भी आएंगे बहकाने वाले।
bahoot hi sunder... jamane ki nabz bahoot hi sahi pakdi hai aapne........ bahoot ki hridayasparshi gazal.......
रस्ते कहां, कहां मंज़िल है कौन बताए,
भटक गए हैं खु़द ही राह दिखाने वाले।
sach to yahi raha
हमेशा की तरह ख़ूबसूरत ग़ज़ल... एक पुराना शेर याद आ गया:
मेरे रोने पे जो हँसता होगा
उसका ग़म मुझसे भी ज़्यादा होगा.
ज़बरदस्त ग़ज़ल है. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण.
आपको क्रिस्मस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सुनते हैं रोने से दुख हल्का होता है,
कैसे जीते होंगे फिर न रोने वाले।
उम्दा शे'र ,बेहतरीन ग़ज़ल।
आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
वाह गुरू,छा गए। भावनात्मक उड़ान अच्छी लगी।
क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
आशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
भूल चुके हैं हरदम साथ निभाने वाले,
याद किसे रखते हैं आज ज़माने वाले।
beautiful poem
भूल चुके हैं हरदम साथ निभाने वाले,
याद किसे रखते हैं आज ज़माने वाले।
इस निर्मम ज़माने में लोग मतलब से जुड़ते है और जुदा होते है . आपकी रचनाये दिल के करीब पाता हूँ . आभार
दूर कहीं जाकर बहलाएं मन को वरना,
चले यहां भी आएंगे बहकाने वाले।
बहुत उम्दा शेर है.आपका लेखन सही तस्वीर उकेरता है समाज की.बधाई
सुनते हैं रोने से दुख हल्का होता है,
कैसे जीते होंगे फिर न रोने वाले।
behad pyari panktiyaan :)
aadarniy sir
mujhe to samajh me hi nahi aa raha hai ki ,kin panktiyo ko sabse achhi kahun ,sabhi ek se badh kar ek hain.
रस्ते कहां, कहां मंज़िल है कौन बताए,
भटक गए हैं खु़द ही राह दिखाने वाले
behatreen ,har line bemisaal
badhai sir .
poonam
रोते रोते ऊब चुके वे पूछा करते,
क्या तुमने देखे हैं कहीं हंसाने वाले....
very nice poem thanks for posting....
हर शब्द, हर शेर बेहतरीन है...
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है...
हर पंक्ति में हकीकत बोलती है. अच्छी गज़ल. बधाई और आभार .
I am too glad to see so many comments on your ghazal.
Pranam
Sushil
कहाँ ढूंढें साहब हँसाने वाले ?
अपने ही ग़म हम है खाने वाले ;)
अच्छी रचना, लिखते रहिये
nice,,..
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Lyrics
Mantra
महेन्द्र जी, आपकी गजल में जिंदगी का सार नजर आता है। यकीन मानिए मैं आपकी लेखनी का मुरीद होता जा रहा हूँ।
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अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
वाह!क्या गजल है।मार्मिक प्रस्तुति। नव वर्ष की शुभकामनां के साथ। सादर।
pranam chacha.
bahut aachi lahi ...........
behtareen.....
sunita
रस्ते कहां, कहां मंज़िल है कौन बताए,
भटक गए हैं खु़द ही राह दिखाने वाले।
महेंद्र जी,
आपकी ग़ज़ल आज के हालात का आईना है !
हर शेर पूरी संजीदीगी से अपना प्रभाव छोड़ने में सफल है !
बधाई और नव वर्ष की शुभकामनाएँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह ....बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
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