गीतिका : बरसात में



धरणि धारण कर रही, चुनरी हरी बरसात में,

साजती शृंगार सोलह, बावरी बरसात में।



रोक ली है राह काले, बादलों ने किरण की,

पीत मुख वह झाँकती, सहमी-डरी बरसात में,



याद जो आई किसी की, मन हुआ है तरबतर,

तन भिगो देती छलकती, गागरी बरसात में।



एक तो बूँदें हृदय में, सूचिका सी चुभ रहीं,

क्यों किसी ने छेड़ दी फिर, बाँसुरी बरसात में।



क्रोध से बौरा गए, होंगे नदी-नाले सभी,

सोचते ही आ रही है, झुरझुरी बरसात में।



ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,

किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में


                                     
                                                                   -महेंद्र वर्मा

46 comments:

Sunil Kumar said...

रोक ली है राह काले, बादलों ने किरण की,

पीत मुख वह झाँकती, सहमी-डरी बरसात में,

रचना अच्छी लगी , बधाई

मनोज कुमार said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।
क्या बात कही है वर्मा साहब!
मन की बात!!

Bharat Bhushan said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।
क्या बात है वर्मा जी, बरसात में सुलगता गीत!! कितना सुंदर... वाह!!

अजय कुमार said...

बरसात पर सुंदर रचना ।

virendra sharma said...

धरणि धारण कर रही, चुनरी हरी बरसात में,

साजती शृंगार सोलह, बावरी बरसात में।

प्रकृति चित्रण के साथ नद नालों ,प्रकृति नटी का मानवीकरण ,विरह बरखा और गीले उपलों को सुलगाती दूर बसे प्रियतम की प्रेयसी और धरती का हरा बिछौना ..बेहतरीन प्रस्तुती कल- कल बहती नदिया ,समीर से शब्द ,मन आह्लादित हुआ काव्य छटा से .आभार ........ कृपया यहाँ भी पधारें .Super food :Beetroots are known to enhance physical strength,say cheers to Beet root juice.Experts suggests that consuming this humble juice could help people enjoy a more active life .(Source: Bombay Times ,Variety).

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Anupama Tripathi said...

बरसात में मन भिगोती हुई भाव प्रबल बहुत सुंदर रचना ....!!

vandana gupta said...

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।

http://tetalaa.blogspot.com/

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

भरी बरसात ने दिल जलाया और उपले गीले कर डाले..चूल्हा ठंडा रह गया.. तन मन को भिगोती और पानी में आग लगाती हुई यह गीतिका अद्भुत है, वर्मा साहब!!

रेखा said...

बरसात का अदभुत वर्णन .

रेखा said...

मित्रता दिवस की शुभकामनाये.

Unknown said...

Barsaat ke sundar chitran me bheengoti anupam kriti

Apanatva said...

bahut sunder ......
anupam........

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

एक तो बूँदें हृदय में, सूचिका सी चुभ रहीं,

क्यों किसी ने छेड़ दी फिर, बाँसुरी बरसात में।

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...

Amrita Tanmay said...

वर्मा जी , सुन्दर शब्दों में बरसात का सुन्दर चित्रण किया है .आपको हार्दिक बधाई .

Rahul Singh said...

भरपूर बरसात.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

“बरखा सी झरझराती, भावों की बरसात.
आनंद में सराबोर, कर देती अकस्मात”
सुन्दर रचना भईया...
सादर...

मेरा साहित्य said...

रोक ली है राह काले, बादलों ने किरण की,

पीत मुख वह झाँकती, सहमी-डरी बरसात में,
shandar ek ek shbd ne chitr sa utpann kar diya hai .
aesa drishya utpann kana ek badi baat hai
saader
rachana

Kunwar Kusumesh said...

बरसात में ज़बरदस्त गीतिका.
मज़ा आ गया पढ़कर.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बरसात के बीच बरसात की कविता पढने से उसका आनंद दोगुना हो गया1

------
ब्‍लॉगसमीक्षा की 27वीं कड़ी!
आखिर इस दर्द की दवा क्‍या है ?

Shikha Kaushik said...

bahut sundar bhavabhivyakti .aabhar

DR. ANWER JAMAL said...

फ्रेंडशिप डे की शुभकामनाये

इन जैसे मुददों पर विचार करने के लिए
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आपका स्वागत है।
http://www.hbfint.blogspot.com/

संतोष त्रिवेदी said...

बरसात पर आला दर्जे की रचना.....पढ़कर झुरझुरी आ गई !

anamika said...

kya baat hai....maza aa gaya

रचना दीक्षित said...

"ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।"

बहुत खूब महेंद्र जी सावन में सुंदर सी गीतिका पढकर मन संपूर्ण आल्हादित हो गया. आभार.

Rajesh Kumari said...

Mahendra ji kya kahun aapki kavita ki taareef me shabd hi kam pad rahe hain.bahut bahut hi achchi lagi yeh kavita.

vidhya said...

kya baat hai....

डॉ0 विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’ said...

बहुत ही सुन्दर रचना .अत्यंत सुगम और भावपूर्ण . बधाई

prerna argal said...

एक तो बूँदें हृदय में, सूचिका सी चुभ रहीं,

क्यों किसी ने छेड़ दी फिर, बाँसुरी बरसात में।barsaat per bahut sunder bhav liye saarthak rachanaa .badhaai aapko.

"ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।

बहुत खूब सर, बहुत खूब

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,

किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।...shandaar ghazal lekin is mari barsat ka jabab nahin..sadar pranam ke sath

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर शब्दों में बरसात का सुन्दर चित्रण किया है.....वर्मा जी

संजय भास्‍कर said...

फ्रेंडशिप डे ' की आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ ..... |

Dinesh pareek said...

मुझे क्षमा करे की मैं आपके ब्लॉग पे नहीं आ सका क्यों की मैं कुछ आपने कामों मैं इतना वयस्थ था की आपको मैं आपना वक्त नहीं दे पाया
आज फिर मैंने आपके लेख और आपके कलम की स्याही को देखा और पढ़ा अति उत्तम और अति सुन्दर जिसे बया करना मेरे शब्दों के सागर में शब्द ही नहीं है
पर लगता है आप भी मेरी तरह मेरे ब्लॉग पे नहीं आये जिस की मुझे अति निराशा हुई है

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

ऊपले गीले हुए ............ जलता नहीं चूल्हा सखी
किन्तु तन-मन क्यों सुलगता इस मरी बरसात में '
.......................वाह महेंद्र जी , गज़ब के भाव
......................सुन्दर गीतिका

स्वाति said...

wah wah....

Urmi said...

याद जो आई किसी की, मन हुआ है तरबतर,
तन भिगो देती छलकती, गागरी बरसात में।
एक तो बूँदें हृदय में, सूचिका सी चुभ रहीं,
क्यों किसी ने छेड़ दी फिर, बाँसुरी बरसात में।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! मनमोहक और भावपूर्ण रचना! बधाई!

virendra sharma said...

अब तो, बात अमन की हो तो मुझको बुरा लगता है

है यह सियासत भर, कह कर मुझको सता गया कोई...बहुत खूब कहा ,हालाते बयाँ आपने ,इस मुल्क का नसीब आपने .
.http://veerubhai1947.blogspot.com/ एक तो बूँदें हृदय में, सूचिका सी चुभ रहीं,

क्यों किसी ने छेड़ दी फिर, बाँसुरी बरसात में।
बहुत सुन्दर भाव संसिक्त रचना .
बुधवार, १० अगस्त २०११
सरकारी चिंता
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ashish said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,

किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।


maja aa gaya padhkar . abhar

!!अक्षय-मन!! said...

waah sir ji aap to ghjab kaa likhte hain kya kahuin kuch samjh nahi aata mere saaare shabd fike se hain aapke in madhur shabdon ke samne....

S.N SHUKLA said...

बहुत सटीक प्रस्तुति,

ZEAL said...

.

धरणि धारण कर रही, चुनरी हरी बरसात में,

साजती शृंगार सोलह, बावरी बरसात में।

Outstanding creation!
Very appealing couplets .

Sorry for being late here.

.

केवल राम said...

याद जो आई किसी की, मन हुआ है तरबतर,
तन भिगो देती छलकती, गागरी बरसात में।

सुंदर कल्पना की है आपने ....आपका आभार

'साहिल' said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।

लीक से हटकर बहुत ही खूबसूरत शेर कहें है आपने.
बरसात का चित्रात्मक विवरण और साथ ही मन में उठती कसक को बहुत खूबसूरत शब्द दिए गए हैं
मनमोहक ग़ज़ल !

Kailash Sharma said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,

किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।

....बहुत खूब ! लाज़वाब वर्षा चित्रण..आभार

Maheshwari kaneri said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,

किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।...

मधुर भावो की सुन्दर प्रस्तुति...

दिगम्बर नासवा said...

ऊपले गीले हुए, जलता नहीं चूल्हा सखी,
किंतु तन-मन क्यों सुलगता, इस मरी बरसात में।

सुन्दर श्रंगारित चित्रण ... अनुपम रचना है ...