संत कवि परसराम


संत कवि परसराम का जन्म बीकानेर के बीठणोकर कोलायत नामक स्थान पर हुआ था। इनका जन्म वर्ष संवत 1824 है और इनके देहावसान का काल पौष कृष्ण 3, संवत 1896 है। परसराम जी संत रामदास के शिष्य थे।
राम नाम को सार रूप में ग्रहण करके संत कवि ने वचन पालन, नाम जप, सत्संगति करना, विषय वासनाओं का त्याग, हिंसा का त्याग, अभिमान का त्याग तथा शील स्वभाव अपनाने पर जोर दिया।
उनका कहना है कि अंत समय में सभी को मरना है, फिर जब तक जीवन है तब तक सुकर्म ही करना चाहिए। परसराम के काव्य में सहज भावों की अभिव्यक्ति सहज भाषा में की गई है। उनकी भाषा में राजस्थानी और खड़ी बोली का पुट दिखाई देता है। उन्होंने अधिकांश उपदेश छप्पय छंद में लिखे हैं। दोहों में जगत और जीवन के संजीवन बोध को प्रकट किया है जो अत्यंत सहज और सरल है।

प्रस्तुत है संत परसराम जी रचित कुछ दोहे-

प्रथम शब्द सुन साधु का, वेद पुराण विचार,
सत संगति नित कीजिए, कुल की काण विचार।

झूठ कपट निंदा तजो, काम क्रोध हंकार,
दुर्मति दुविधा परिहरो, तृष्णा तामस टार।

राग दोस तज मछरता, कलह कल्पना त्याग,
संकलप विकलप मेटि के, साचे मारग लाग।

पूरब पुण्य प्रताप सूं, पाई मनखा देह,
सो अब लेखे लाइए, छोड़ जगत का नेह।

धीरज धरो छिमा गहो, रहो सत्य व्रत धार,
गहो टेक इक नाम की,  देख जगत जंजार।

दया दृष्टि नित राखिए, करिए पर उपकार,
माया खरचो हरि निमित, राखो चित्त उदार।

जल को पीजे छानकर, छान बचन मुख बोल,
दृष्टि छान कर पांव धर, छान मनोरथ तोल।

जति पांति का भरम तज, उत्तम करमा देख,
सुपात्तर को पूजिए, का गृहस्थ का भेख।

26 comments:

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

इतिहास मे महा पुरूषों व उनकी रचनाओं को वर्माने के सामने लाने के आपके उत्क्रिष्ट प्रयास को मेरा सलाम।

Bharat Bhushan said...

संत परसराम की वाणी में संतमत हिलोरें ले रहा है.

धीरज धरो छिमा गहो, रहो सत्य व्रत धार,
गहो टेक इक नाम की, देख जगत जंजार।

संत परसराम ने इतने कम शब्दों में धर्म का सार कह दिया है.
धन्यवाद महेंद्र जी.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

संत कवि परसराम को नमन.महेंद्र जी आपकी यह पोस्ट एक अनमोल धरोहर है.आपका आभार.

रविकर said...

धन्य-धन्य यह मंच है, धन्य टिप्पणीकार |

सुन्दर प्रस्तुति आप की, चर्चा में इस बार |

सोमवार चर्चा-मंच

http://charchamanch.blogspot.com/

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

जल को पीजे छानकर, छान बचन मुख बोल,
दृष्टि छान कर पांव धर, छान मनोरथ तोल।

'छान' को ले कर शायद अपनी तरह का यह इकलौता दोहा है। संत परमदास जी से साक्षात्कार करवाने के लिए बहुत बहुत आभार।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

उत्कृष्ट प्रस्तुति ...
हर दोहा जीवनोपयोगी ....
संत परसराम जी के बारे में इतनी अच्छी जानकारी देने का आभार

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर , सार्थक प्रस्तुति,आभार.

virendra sharma said...

सार्थक अर्थ पूर्ण नीतिपरक दोहे .शुक्रिया .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सभी दोहे सार्थक ..आपका यह प्रयास सराहनीय है ..

Maheshwari kaneri said...

सुन्दर , सार्थक प्रस्तुति,आभार.

vandana gupta said...

संत कवि परसराम को नमन………सार्थक अर्थपूर्ण दोहे।

Amrita Tanmay said...

वर्मा जी, हमें इन बहुमूल्य मोतियों को जानने का सुअवसर देने के लिए हार्दिक आभार.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अद्भुत भारत वर्ष है, संत-महंत की खान,
इनकी बानी में बसे, गीता, बेद, पुरान!
और आभार आपका वर्मा साहब, जो आपने इनसे परिचय करवाया!!

मनोज कुमार said...

जल को पीजे छानकर, छान बचन मुख बोल,
दृष्टि छान कर पांव धर, छान मनोरथ तोल।

सारे दोहे लाजवाब। मन तृप्त हुआ। इस अनमोल निधि से हमारा परिचय करानी के लिए आभार।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

भाव पूर्ण दोहे,सार्थक प्रस्तुति संत परसराम जी को मेरा नमन...

रजनीश तिवारी said...

संत कवि परसराम जी के बारे में जानकारी देने के लिए आभार ...सभी दोहे बहुत अच्छे लगे ।

नीरज द्विवेदी said...

आपको नमन, महापुरुषों का परिचय देने के लिए, और इन अद्भुत दोहों के रचयिता को प्रणाम
My Blog: Life is Just a Life
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.

रचना दीक्षित said...

सुंदर जानकारी संत कवि के विषय में. साथ ही दोहों का संकलन भी अद्भुत.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अत्यंत सुन्दर/उपयोगी/जानकारीपरक प्रस्तुति....
संतकवि परसराम को नमन...
सादर आभार....

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

प्रिय महेंद्र वर्मा जी संत कवी परसराम को नमन ..सुन्दर जानकारी ..अनमोल वचन ...
भ्रमर ५

धीरज धरो छिमा गहो, रहो सत्य व्रत धार,
गहो टेक इक नाम की, देख जगत जंजार।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

दया दृष्टि नित राखिए, करिए पर उपकार,
माया खरचो हरि निमित, राखो चित्त उदार।

बहुत सुंदर दोहे .....संतकवि परसराम को नमन .

मेरा साहित्य said...

sant parasram ke ji ke dohe kamal hai.

धीरज धरो छिमा गहो, रहो सत्य व्रत धार,
गहो टेक इक नाम की, देख जगत जंजार।
rachana

दिगम्बर नासवा said...

सारतः सुन्दर दोहे ... संतों की बानी में अमृत का वास होता है ... धन्यवाद आपका ...

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर सार्थक नीतिपरक दोहे..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

Urmi said...

बहुत सुन्दर दोहे! सभी एक से बढ़कर एक है! सार्थक प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Human said...

बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने,दोहोँ से तो ज्ञान-गंगा बह रही है। दीपावली की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ ।