कम शब्दों में गंभीर सारगर्भित बहुत सुंदर क्षणिकायें.......
मेरे नए पोस्ट की चंद लाइने पेश है..........
नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है, इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,
अगर आपको पसंद आए तो समर्थक बने.... मुझे अपार खुशी होगी........धन्यबाद....
35 comments:
वाह! अद्भुत!!
कम शब्दों में बहुत ही गंभीर बातें। हमारे प्रयोग करने से ही जहां स्वर्ग हो सकता है, या नर्क।
अब तुम
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह
बहुत बढ़िया ...
बहुत सुदर क्षणिकाएं, आभार
बहुत ही सुंदर और सारगर्भित क्षणिकाएं, आभार....
क्षणिकाओं के माध्यम से गम्भीर चिंतन ,आत्म-मंथन का सहज संदेश.
सबको दिया
वही धरा
वही गगन
वही जल-अगन-पवन
अब तुम
चाहे जिस तरह जियो
बहुत सुदर क्षणिकाएं,गम्भीर संदेश
अर्थ पूर्ण सौदेश्य विचार कणिकाएं .सुन्दर मनोहर .आत्म विश्लेषण और आत्मालोचन को उकसाती सी .
गंभीर और सीधी सीधी बात.
सुंदर प्रस्तुति. आभार.
एक और अच्छी प्रस्तुति ||
आभार ||
अब तुम
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह
ye bhi khoob rahi ...
sunder rachna ...
सुन्दर सारगर्भित रचना , सुना है बुद्ध को नक़ल करने वाले को बुद्धू कहा जाने लगा था .
गागर में सागर !
देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर …………दोनो ही लाजवाब्।
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत अच्छी बात कही आपने...शुभकामनाएँ!
खूबसूरत क्षनिकाएं. सार्थक रचना.
bahut khub :) aabhar..
great philosophy hidden in the lovely lines...
व्यक्ति की सार्थकता उसकी रहनी में है कि वह कैसा रहता है. बहुत सुंदर क्षणिकाएँ महेंद्र जी.
अब तुम
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह
दोनों ही क्षणिकाएँ लाजवाब!
सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
सुंदर क्षणिकाएँ!
बहुत खूब! लाज़वाब क्षणिकाएं ....
गालियाँ बनाओ या गीत....
वाह... आदरणीय महेंद्र भईया....
सशक्त क्षणिकाएं हैं....
सादर.
कम शब्दों में गंभीर सारगर्भित बहुत सुंदर क्षणिकायें.......
मेरे नए पोस्ट की चंद लाइने पेश है..........
नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,
अगर आपको पसंद आए तो समर्थक बने....
मुझे अपार खुशी होगी........धन्यबाद....
शब्दों कको अपव्यय से बचाकर एक कविता की रचना आपसे सीखता हूँ.. चाहे किसी भी विधा में लिखें आप शब्दों की गरिमा बरकरार रहती है!!
वाह महेंद्र जी ... क्या बात कह दी है ... ये सच है जीवन को कैसे जीना ये अपने आप पर ही निर्भर है ... कमाल का लिखा है ...
महेन्द्र जी नम्स्कार , कम शब्द पर गम्भीर भाव्।
आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
सुंदर और सारगर्भित क्षणिकाएं...आभार....
बहुत सुन्दर लिखा है |
आशा
BAHUT SATEEK BAT KAHI HAIN .AABHAR
हम तो
अक्षर हैं
निर्गुण-निरर्थक
तुम्हारी जिह्वा के खिलौने
अब
यह तुम पर है कि
तुम हमसे
गालियाँ बनाओ
या
गीत...kamaal kee kshanika
laajawab lekhan .
gagar me sagar .
दोनो ही क्षणिकाएं, बहूत ही सुंदर है ...
और अच्छे संदेश देती है...
Post a Comment