क्षणिकाएँ


1.
हम तो  
अक्षर हैं
निर्गुण-निरर्थक
तुम्हारी जिह्वा के खिलौने
अब 
यह तुम पर है कि
तुम हमसे
गालियाँ बनाओ
या
गीत




2.
मैंने तो 
सबको दिया
वही धरा
वही गगन
वही जल-अगन-पवन
अब तुम 
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह

                                                    -महेन्द्र वर्मा

35 comments:

मनोज कुमार said...

वाह! अद्भुत!!
कम शब्दों में बहुत ही गंभीर बातें। हमारे प्रयोग करने से ही जहां स्वर्ग हो सकता है, या नर्क।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अब तुम
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह

बहुत बढ़िया ...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत सुदर क्षणिकाएं, आभार

Sunil Kumar said...

बहुत ही सुंदर और सारगर्भित क्षणिकाएं, आभार....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

क्षणिकाओं के माध्यम से गम्भीर चिंतन ,आत्म-मंथन का सहज संदेश.

Unknown said...

सबको दिया
वही धरा
वही गगन
वही जल-अगन-पवन
अब तुम
चाहे जिस तरह जियो

बहुत सुदर क्षणिकाएं,गम्भीर संदेश

virendra sharma said...

अर्थ पूर्ण सौदेश्य विचार कणिकाएं .सुन्दर मनोहर .आत्म विश्लेषण और आत्मालोचन को उकसाती सी .

रचना दीक्षित said...

गंभीर और सीधी सीधी बात.

सुंदर प्रस्तुति. आभार.

रविकर said...

एक और अच्छी प्रस्तुति ||
आभार ||

Anupama Tripathi said...

अब तुम
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह

ye bhi khoob rahi ...
sunder rachna ...

Amrita Tanmay said...

सुन्दर सारगर्भित रचना , सुना है बुद्ध को नक़ल करने वाले को बुद्धू कहा जाने लगा था .

Sonroopa Vishal said...

गागर में सागर !

vandana gupta said...

देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर …………दोनो ही लाजवाब्।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

मदन शर्मा said...

बहुत अच्छी बात कही आपने...शुभकामनाएँ!

Amit Chandra said...

खूबसूरत क्षनिकाएं. सार्थक रचना.

Monika Jain said...

bahut khub :) aabhar..

ZEAL said...

great philosophy hidden in the lovely lines...

Bharat Bhushan said...

व्यक्ति की सार्थकता उसकी रहनी में है कि वह कैसा रहता है. बहुत सुंदर क्षणिकाएँ महेंद्र जी.

ऋता शेखर 'मधु' said...

अब तुम
चाहे जिस तरह जियो
बुद्ध की तरह
या
बुद्धू की तरह

दोनों ही क्षणिकाएँ लाजवाब!

Jeevan Pushp said...

सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !

अनुपमा पाठक said...

सुंदर क्षणिकाएँ!

Kailash Sharma said...

बहुत खूब! लाज़वाब क्षणिकाएं ....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

गालियाँ बनाओ या गीत....

वाह... आदरणीय महेंद्र भईया....
सशक्त क्षणिकाएं हैं....
सादर.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

कम शब्दों में गंभीर सारगर्भित बहुत सुंदर क्षणिकायें.......

मेरे नए पोस्ट की चंद लाइने पेश है..........

नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,

अगर आपको पसंद आए तो समर्थक बने....
मुझे अपार खुशी होगी........धन्यबाद....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

शब्दों कको अपव्यय से बचाकर एक कविता की रचना आपसे सीखता हूँ.. चाहे किसी भी विधा में लिखें आप शब्दों की गरिमा बरकरार रहती है!!

दिगम्बर नासवा said...

वाह महेंद्र जी ... क्या बात कह दी है ... ये सच है जीवन को कैसे जीना ये अपने आप पर ही निर्भर है ... कमाल का लिखा है ...

Suman Dubey said...

महेन्द्र जी नम्स्कार , कम शब्द पर गम्भीर भाव्।

प्रेम सरोवर said...

आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

संध्या शर्मा said...

सुंदर और सारगर्भित क्षणिकाएं...आभार....

Asha Lata Saxena said...

बहुत सुन्दर लिखा है |
आशा

Shikha Kaushik said...

BAHUT SATEEK BAT KAHI HAIN .AABHAR

रश्मि प्रभा... said...

हम तो
अक्षर हैं
निर्गुण-निरर्थक
तुम्हारी जिह्वा के खिलौने
अब
यह तुम पर है कि
तुम हमसे
गालियाँ बनाओ
या
गीत...kamaal kee kshanika

Apanatva said...

laajawab lekhan .
gagar me sagar .

मेरा मन पंछी सा said...

दोनो ही क्षणिकाएं, बहूत ही सुंदर है ...
और अच्छे संदेश देती है...