दर्शन और गणित का संबंध




मानवीय ज्ञान के क्षेत्र में दो शास्त्र- गणित और दर्शन- ऐसे विषय हैं जिनका स्पष्ट संबंध मस्तिष्क की चिंतन क्षमता और तर्क से है। मानव जाति के उद्भव के साथ ही इन दोनों विषयों का प्रादुर्भाव हुआ है। इनके विषय वस्तु में कोई प्रत्यक्ष समानता नहीं है किंतु अध्ययन की प्रणाली और इनके सिद्धांतों और निष्कर्षों में अद्भुत सामंजस्य दृष्टिगोचर होता है। वास्तव में गणित और दर्शन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों विषय किसी न किसी प्रकार से एक रहस्यमय संबंध के द्वारा जुड़े हुए हैं। जिन मनीषियों ने गणित के क्षेत्र में जटिल नियमों और सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है, उन्होंने ही दर्शन के क्षेत्र में क्रांतिकारी विचारों को जन्म दिया है। प्लेटो, अरस्तू, पायथागोरस, डेकार्ट, लाइब्निट्ज, बर्कले, रसेल, व्हाइटहेड आदि ने दर्शन और गणित, दोनों क्षेत्रों में अपने विचारों से युग को प्रभावित किया है।

दर्शन तर्क का विषय है और तर्क गणित का आवश्यक अंग है। चिंतन की वांछित प्रणाली प्राप्त करने के लिए गणित का अध्ययन आवश्यक है। दार्शनिकों को इन्द्रियों के प्रत्यक्ष ज्ञान की अविश्वसनीयता ने सदैव उद्वेलित किया है किंतु उन्हें यह जानकर आनंद का अनुभव हुआ कि उनके सामने ज्ञान का एक ऐसा क्षेत्र भी है जिसमें भ्रम या धोखे के लिए कोई स्थान नहीं है- वह था, गणितीय ज्ञान। गणित संबंधी धारणाओं को सदा ही ज्ञान की एक ऐसी प्रणाली के रूप में स्वीकार किया गया है जिसमें सत्य के उच्चतम मानक पर खरा उतरने की क्षमता विद्यमान है।

‘प्रकृति की पुस्तक गणित की भाषा में लिखी गई है‘- गैलीलियो के इस कथन का सत्य उसके अनुवर्ती शताब्दियों में निरंतर प्रकट होता रहा है। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी के यूनानी गणितज्ञ पायथागोरस ने गणित और दर्शन को मिला कर एक कर दिया था। उनकी मान्यता थी कि प्रकृति का आरंभ संख्या से ही हुआ है।
आधुनिक पाश्चात्य दर्शन के जनक फ्रांस के रेने डेकार्ट को प्रथम आधुनिक गणितज्ञ भी कहा जाता है। इन्होंने निर्देशांक ज्यामिति की नींव रखी। आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए उनके द्वारा प्रतिपादित यह स्वयंसिद्ध प्रसिद्ध है-‘मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं।‘ डेकार्ट का कहना है- ‘गणित ने मुझे अपने तर्कों की असंदिग्धता और प्रामाणिक लक्षण से आह्लादित किया है।‘

गणित में चलन-कलन के आविष्कारक और दर्शन में चिद्बिंदुवाद के प्रवर्तक जर्मन विद्वान गाटफ्रीड विल्हेम लाइब्निट्ज थे। प्रकृति के वर्णन के लिए गणितीय विधियों के सफल व्यवहार ने लाइब्निट्ज को यह विश्वास करने की प्रेरणा दी कि सारा विज्ञान गणित में परिणित हो सकता है। उन्होंने दर्शन और गणित के प्रतीकों का सामंजस्य करते हुए लिखा है-‘ ईश्वर 1 है और 0 कुछ नहीं। जिस प्रकार 1 और 0 से सारी संख्याएं व्यक्त की जा सकती हैं उसी प्रकार ‘एक‘ ईश्वर ने ‘कुछ नहीं‘ से सारी सृष्टि का सृजन किया है।
तर्कशास्त्र के इतिहास में मोड़ का बिंदु तब आया जब उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में जार्ज बुले और डी मार्गन ने तर्कशास्त्र के सिद्धांतों को गणितीय संकेतन की विधि से प्रतीकात्मक भाषा में व्यक्त किया। जार्ज बुले ने बीजगणित के चार मूलभूत नियमों  के आधार पर दार्शनिक तर्कों का विश्लेषण किया था।
बट्र्रेंड रसेल दर्शन और गणित की समीपता को समझते थे। उनके द्वारा दार्शनिक प्रत्ययों का तार्किक गणितीय परीक्षण किया जाना दर्शन के क्षे़त्र में एक नई पहल थी।

रसेल के गुरु अल्फ्रेड नार्थ व्हाइटहेड ने एक गणितज्ञ के रूप में अपना कार्य प्रारंभ किया किंतु उनके गणितीय सिद्धांतों में वे भाव पहले से ही थे जिनके कारण वे युगांतरकारी दार्शनिक विचार प्रतिपादित कर सके। विटजनस्टीन ने गणितीय भाषा से प्रभावित होकर ‘भाषायी दर्शन‘ तथा हेन्स राइखेन बाख ने ‘वैज्ञानिक दर्शन‘ की नींव डाली।

आधुनिक बीजगणित के समुच्चय सिद्धांत पर आधारित तर्कशास्त्र न केवल अनेक प्राकृतिक घटनाओं की बल्कि अनेक सामाजिक व्यवहारों की भी व्याख्या करने में समर्थ है। समुच्चयों को प्रदर्शित करने के लिए वैन नामक गणितज्ञ ने ‘वैन आरेख‘ पद्धति विकसित की जो उनके द्वारा लिखित ‘सिंबालिक लाजिक‘ नामक पुस्तक में वर्णित है। उनकी यह कृति प्रतीकात्मक तर्कशास्त्र के तत्कालीन विकास का व्यापक सर्वेक्षण है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य

जिन ऋषियों ने उपनिषदों की रचना की उन्होंने ही वैदिक गणित और खगोलशास्त्र या ज्योतिर्गणित की रचना की है। ईशावास्य उपनिषद के आरंभ में आया यह श्लोक निश्चित ही ऐसे मस्तिष्क की रचना है जो गणित और दर्शन दोनों का ज्ञाता था - ‘ ओम् पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्चते, पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।‘ इस की व्याख्या संख्या सिद्धांत के आधार पर इस तरह की जा सकती है- प्राकृत संख्याओं के अनंत समुच्चय में से यदि सम संख्याओं का अनंत समूह निकाल दिया जाए तो शेष विषम संख्याओं का समुच्चय भी अनंत होगा। इसी तरह ‘एकोहम् बहुस्याम्‘ ‘तत्वमसि‘ आदि सूत्रों का गणित से अद्भुत सामंजस्य है।

प्रख्यात गणितज्ञ प्रो. रामानुजम् गणित के अध्ययन-मनन को ईश्वर चिंतन की प्रक्रिया मानते थे। उनकी धारणा थी कि केवल गणित के द्वारा ही ईश्वर का सच्चा स्वरूप स्पष्ट हो सकता है।
दर्शन और गणित के इस गूढ़ संबंध का कारण यह है कि दोनों विषयों में जिन आधारभूत प्रत्ययों का अध्ययन-विश्लेषण होता है, वे सर्वथा अमूर्त हैं। दर्शन में ब्रह्म, आत्मा, माया, मोक्ष, शुभ-अशुभ आदि प्रत्यय जितने अमूर्त एवं जटिल हैं उतने ही गणित के प्रत्यय- बिंदु, रेखा, शून्य, अनंत, समुच्चय आदि भी अमूर्त एवं क्लिष्ट हैं।
भारतीय दर्शन का सत्य कभी परिवर्तित नहीं हुआ, ऐसे ही गणित के तथ्य भी शाश्वत सत्य हैं। गणित और दर्शन शुष्क विषय नहीं हैं बल्कि कला के उच्च प्रतिमानों की सृष्टि गणितीय और दार्शनिक मस्तिष्क में ही संभव है।
महान गणितज्ञ और दार्शनिक आइंस्टाइन का यह कथन गणित और दर्शन के संबंध को स्पष्ट करता है- ‘मैं किसी ऐसे गणितज्ञ और वैज्ञानिक की कल्पना नहीं कर सकता जिसकी धर्म और दर्शन में गहरी आस्था न हो।‘

                                                                                                                                    -महेन्द्र वर्मा

23 comments:

virendra sharma said...

‘प्रकृति की पुस्तक गणित की भाषा में लिखी गई है‘- गैलीलियो के इस कथन का सत्य उसके अनुवर्ती शताब्दियों में निरंतर प्रकट होता रहा है। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी के यूनानी गणितज्ञ पायथागोरस ने गणित और दर्शन को मिला कर एक कर दिया था। उनकी मान्यता थी कि प्रकृति का आरंभ संख्या से ही हुआ है।
बहुत ही एब्ज़ोर्बिंग विश्लेषण है ज़नाब .मजा आ गया .जहां तर्क का दायरा समाप्त होता है वहां से दर्शन की शुरुआत होती है .

Rahul Singh said...

बढि़या आलेख, सारांश के बजाय पूरा होता तो बेहतर.

Kailash Sharma said...

बहुत सारगर्भित आलेख....

मदन शर्मा said...

बहुत सुन्दर विश्लेषण किया है आपने
सुन्दर प्रस्तुति ....
आज शिव रात्रि तथा दयानंद बोध दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामनाये

Jeevan Pushp said...

बहुत ही ज्ञानपरक आलेख !
आभार !

Rajesh Kumari said...

bahut sargarbhit lekh hai ganit aur darshan ek hi sikke ke do pahloo hain bahut gyaanvardhak aalekh.

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही सारगर्भित और बढिया आलेख ... शिव रात्रि पर हार्दिक बधाई..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

उत्कृष्ट विश्लेषण करता ज्ञानवर्धक आलेख सर...
सादर.

रेखा said...

बहुत कुछ सीखने और जानने को मिला .....सार्थक आलेख

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

जब से आपसे परिचय है आपको एक कवि के रूप में ही जाना है.. गद्य शैली में संत कवियों के परिचय के रूप में ही आपके आलेख पढ़े हैं.. किन्तु आज आपके इस रूप से भी परिचय हुआ.. एक बहुत ही संतुलित आलेख... गणित, विज्ञान, आध्यात्म और दर्शन.. शायद सही अर्थों में उस अज्ञात की खोज के यंत्र हैं..
जानकारी पूर्ण!! तर्कसंगत!!

Vandana Ramasingh said...

भारतीय दर्शन का सत्य कभी परिवर्तित नहीं हुआ, ऐसे ही गणित के तथ्य भी शाश्वत सत्य हैं।

बहुत सही विश्लेषण किया है आपने

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

प्राचीन ग्रीस चार बातों के लिए जाना जाता था - दर्शन, गणित, कला और शौर्य.

भारत अपने दार्शनिक महत्त्व के लिए आज भी विश्व का केंद्र है.

सृष्टि के समय ब्रह्म ने सोचा -"मैं एक हूँ ..अनेक हो जाऊँ' .. और वह अनेक हो गया.....अभाव से भाव की उत्पत्ति हुयी. अभाव कुछ नहीं है पर उसके बिना भाव भी कुछ नहीं है. शून्य के बिना गणित की कल्पना नहीं की जा सकती. इंटर एटोमिक स्पेस( शून्य) के बिना परमाणु का अस्तित्व भी संभव नहीं.

वर्मा जी ! इतने अच्छे आलेख के लिए साधुवाद !

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

वीरू भाई ! बड़ी विनम्रता से निवेदन करना चाहूँगा कि जहाँ तर्क की सीमा समाप्त होती है वहाँ से दर्शन की नहीं आस्था की सीमा शुरू होती है. तर्क शास्त्र तो स्वयं में सम्पूर्ण दर्शन है.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित विश्लेषण किया है ...दर्शन ... शून्य, गणित और प्राकृति यानी इश्वर ... सभी तो सत्य है ...

मनोज कुमार said...

बहुत ही तार्किक ढंग से आपने अपनी बात रखी है।

लोकेन्द्र सिंह said...

पढ़ाई के दौरान मैं बहुत परेशान रहता था। जोड़, घटना, गुणा, भाग व कुछ और गणित के अलावा बाकी गणित का व्यवहारिक जीवन में कोई उपयोग नहीं तो क्यों हम इससे माथा फोड़ते हैं। एक दिन गणित के सवालों से तंग आकर मैंने अपने शिक्षक से यही पूछ लिया। उन्होंने बताया की बेटे गणित ही जीवन है, गणित तर्क करना सिखाता है। बाकी आपका आलेख बहुत ही समृद्ध है।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

एक सशक्त आलेख ..... कई सारी जानकारियां मिली.......

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बेहतरीन सारगर्भित प्रस्तुति,...बढ़िया सुंदर आलेख ....
MY NEW POST ...काव्यान्जलि...सम्बोधन...

संजय @ मो सम कौन... said...

दोनों ही विषय ऐसे हैं जो आकर्षित भी करते रहे और कभी कभी डराते भी रहे। व्यवस्थित तरीके से दोनों का संबंध आज जाना।
मैं अपना अनुभव बताऊँ तो गणित संबंधी बहुत से सवालों का जवाब मैं बहुत जल्दी बता दिया करता था, और जब साथी लोग पूछते थे कि हल कैसे डिराईव किया, तो सच में मैं नहीं बता पाता था। अब तो खैर, मुद्दे ही बदल गये और सवाल भी।
पिछली बहुत सी पोस्ट्स पर गैरहाजिर रहा, सो मुजरिम हाजिर:)

Bharat Bhushan said...

इस विषय पर पहली बार पढ़ा है. बहुत रुचिकर. पूरा आलेख बेहतर होता.

Amrita Tanmay said...

अनुपूरक विषयों के मध्य सूक्ष्म संबंधों को सरलता से व्याख्यायित करता आलेख हमसे बांटने के लिए हार्दिक आभार..

mark rai said...

बहुत सुन्दर विश्लेषण......
ज्ञानवर्धक आलेख......

sm said...

nice article