पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
सहमे-सहमे से सपने हैं,
आशा के अपरूप,
वक्र क्षितिज से सूरज झाँके,
धुँधली-धुँधली धूप।
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
मेरा भव्य अतीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
छला गया मीठी बातों से,
नाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
अब तक कानों में जो गूँजा,
कोई काँपता गीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
-महेन्द्र वर्मा
40 comments:
हृदयस्पर्शी ...बहुत ही सुंदर रचना ...
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
मेरा भव्य अतीत रहा है।
बहुत ही सुंदर!
बहुत सुंदर गीत है.. दिल से कहा हुआ
सुंदर नवगीत - आभार वर्मा जी
बहुत सुन्दर नवगीत
सहमे-सहमे से सपने हैं,
आशा के अपरूप,
वक्र क्षितिज से सूरज झाँके,
धुँधली-धुँधली धूप।
वाह! बहुत खुबसूरत नवगीत सर...
सादर.
बहुत सुंदर नवगीत ... जैसे सबके मन की बात कह दी हो ...
मन में सीधा प्रवेश करता नवगीत!!
छला गया मीठी बातों से,
नाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
beautiful lines withgreat emotions.
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
मेरा भव्य अतीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
आत्म विशवास और आत्म विश्लेषण ही तो हासिल है ज़िन्दगी का .बहतरीन रचना .
बहुत ही सुन्दर ... मन मोहक नव गीत है ... ह्रदय में उतरता हुवा ...
bahut hi sundar prastuti.
गाफिल जी हैं व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
शुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
सोमवारीय चर्चा-मंच पर है |
charchamanch.blogspot.com
सुँदर नवगीत , आभार .
सुँदर नवगीत , आभार .
बहुत सुन्दर नवगीत...आभार
सहमे-सहमे से सपने हैं,
आशा के अपरूप,
वक्र क्षितिज से सूरज झाँके,
धुँधली-धुँधली धूप।
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
मेरा भव्य अतीत रहा है।
मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ
हृदयस्पर्शी गीत ....
ummdaa
badi hi shandar kavita
man praffulit ho gaya
बहुत बहुत सुन्दर गीत..........
काव्य की ये विधा है ही बड़ी सहज...
शुक्रिया.
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
बहुत सुंदर भावों में पिरोया गया नवगीत .
उदासी पर चलता गीत मधुर भावों को जगाता चलता है. इस दृष्टि से इसे एक अद्भुत गीत कहा जा सकता है. बहुत ख़ूब महेंद्र जी.
sunder navgeet
अब तक कानों में जो गूँजा,
कोई काँपता गीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।..............behatarin prastuti . badhai .
taras naa khaao mere haal par mera bhavya ateet...sach hai..behtarin rachna sadar badhayee aaur amantran ke sath
अस्वस्थता और व्यस्तता ने लम्बे समय से ऐसे सुमनोहर रचनाओं से वंचित कर रखा था...
आज अवसर मिला और पढ़कर जो सुख आह्लाद मिला, शब्दों में नहीं बता सकती..
क्या तो लिखा है आपने...ओह...!!!
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
bahu hi gahre jajbat ke sath likha sunder navgit...
manbhavan ..sunder prastuti..sadar badhayee aaur amantran ke sath
हर बार रसीला लगता है यह गीत ,कहो इसे नवगीत ...
भाई महेंद्र जी बहुत ही सुंदर गीत बधाई |
बहुत सुंदर गीत..........
यह कविता आपके विशिष्ट कवि-व्यक्तित्व का गहरा अहसास कराती है।
तरंगित, आप्लावित कर रही है ये उत्कृष्ट रचना..
छला गया मीठी बातों से,
नाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !
अब तक कानों में जो गूँजा,
कोई काँपता गीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।
Beautiful expression .
.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. पलछिन को दिखाऊँगा.
आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
सच में जीवन से कुछ रीत रहा है..
bahut sunder geet likha hai aapne......
छला गया मीठी बातों से,
नाजुक मन भयभीत।
मिले सभी को अंतरिक्ष से,
जीवन का संगीत।
अब तक कानों में जो गूँजा,
कोई काँपता गीत रहा है।
बहुत नाजुक सा गीत, वाह....
तरस न खाओ मेरे हाल पर,
मेरा भव्य अतीत रहा है।
पल-पल छिन-छिन बीत रहा है,
जीवन से कुछ रीत रहा है।.....
महेन्द्र जी, बहुत खूबसूरत गीत है। आनंद आ गया। धन्यवाद स्वीकार करें।
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